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नज़रें जो फिसलीं हैं
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अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
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अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
नज़रें जो फिसलीं हैं इनको अब टिकने दो
आवाजें ख़ामोशी की मुझको सुनने दो।
आवाजें ख़ामोशी की मुझको सुनने दो।
चुप्पी का दीवानापन पहचाना मैंने
चुप्पी में अपनी तुम मुझको अब बसने दो।।
चुप्पी में अपनी तुम मुझको अब बसने दो।।
गूँथा है जूड़े में उजले वनफूलों को
बागों में जूही अब रूठी कुछ कहने दो।
बागों में जूही अब रूठी कुछ कहने दो।
पुरइन भी सरखी भी महके इन साँसों में
प्रेमी हूँ बात मुझे सबसे यूँ करने दो।
प्रेमी हूँ बात मुझे सबसे यूँ करने दो।
पीछे सब कहते पागलपन की हद हूँ मैं
आशिक दीवाना हूँ धड़कन में पलने दो।
आशिक दीवाना हूँ धड़कन में पलने दो।
लैला की आँखों में काजल भी लाली भी
आँखों को पीकर फिर आज 'अमर' बहने दो।
आँखों को पीकर फिर आज 'अमर' बहने दो।
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