बुधवार, 1 अगस्त 2018

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
अदीबों की महफिल में
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल--9871603621
अदीबों की महफिल में बस कामिनी है।
सुने हर कोई प्रेम की रागिनी है।
किसे फिक्र है क्यों बिलखता है बचपन
लबों पर सभी के तो गजगामिनी है।
कहे जा रहे सब कहानी पुरानी
मुहब्बत बनी नज़्म की स्वामिनी है।
ग़ज़ल क्या हुई जख़्म के गर न चर्चे
हमेशा बसी याद में भामिनी है।
रवायत ये कैसी अदब में बनी अब
यहाँ बज़्म में जख़्म अनुगामिनी है।
वतन की कसम झूठी खा सब रहे क्यों
'अमर' ये जमीं ही तो फलदायिनी है।

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