2122 1212 22
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अब कहें कैसे उनसे प्यार नहीं
मुद्दतों बाद भी करार नहीं
मुद्दतों बाद भी करार नहीं
लाख चुभते रहे मगर हमने
फूल समझा है ग़म को ख़ार नहीं
फूल समझा है ग़म को ख़ार नहीं
आशिक़ी का नशा चढ़ा यूँ है
जिसका उतरा कभी ख़ुमार नहीं
जिसका उतरा कभी ख़ुमार नहीं
दिल ने चाहा रक़ीब को ही अब
मेरा खुद पर ही इख़्तियार नहीं
मेरा खुद पर ही इख़्तियार नहीं
रहबरी लूट को नहीं कहते
तेरे ऊपर है ऐतबार नहीं
तेरे ऊपर है ऐतबार नहीं
झूठ का तू उड़ा रहा परचम
मुल्क़ को तेरा इंतज़ार नहीं
मुल्क़ को तेरा इंतज़ार नहीं
धुन्ध फैली हुई अभी तक है
ज़िंदगी में 'अमर' बहार नहीं
ज़िंदगी में 'अमर' बहार नहीं
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