शनिवार, 27 जून 2020

इस चुनावी खेल में (ग़ज़ल)


इस चुनावी खेल में बस आग की बरसात होगी
ज़ह्र फैलाते हुए दिन नफ़रतों की रात होगी
कब सुहानी सुब्ह होगी जगमगाती रात होगी
सौ सुनहरे ख़्वाब की कब सच कोई भी बात होगी
रात को वह दिन कहे है कैसे दिल माने इसे पर
आइना सच का दिखाने की किसे औकात होगी
देखकर तेवर तुम्हारे अब यही लगने लगा है
अम्न होगा या न होगा लूट अब दिन-रात होगी
चाँदनी रोती रहेगी चाँद भी तन्हा रहेगा
हसरतों की सिसकियाँ या अश्क़ की बारात होगी
आँच मद्धम ही सही पर कोई लौ तो जल रही है
मत बुझाना इस दिये को फिर से रोशन रात होगी
धूप मीठी है 'अमर' तू खोल मन की खिड़कियों को
मुस्कुराने दिल लगा क्यों कुछ न कुछ तो बात होगी


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