ग़ज़ल:
अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
हर तरफ़ है मौत लेकिन प्यास बाकी है अभी
ज़िंदगी की जीत होगी आस बाकी है अभी
ये सफ़र कैसा सफ़र है ख़त्म होता ही नहीं
ज़ीस्त के हर मोड़ पर बनवास बाकी है अभी
धूप ओले आँधियाँ तूफ़ान सब मैं सह गया
खंडहर सा हूँ पड़ा अहसास बाक़ी है अभी
अनवरत चलना मुझे है थक नहीं सकता हूँ मैं
हादसों में हौसला बिंदास बाकी है अभी
आज हैं तनहाइयाँ गुलज़ार था गुज़रा जो कल
ज़िंदगी सौगात है विश्वास बाकी है अभी
भीड़ है उमड़ी सड़क पर याद आया फिर वतन
हमवतन हैं साथ पर उच्छ्वास बाकी है अभी
लाॅकडाऊन से करोना की लड़ाई लड़ रहा
भूख से तू लड़ 'अमर' उपवास बाकी है अभी
🙏🙏😊🙏🙏
अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
हर तरफ़ है मौत लेकिन प्यास बाकी है अभी
ज़िंदगी की जीत होगी आस बाकी है अभी
ये सफ़र कैसा सफ़र है ख़त्म होता ही नहीं
ज़ीस्त के हर मोड़ पर बनवास बाकी है अभी
धूप ओले आँधियाँ तूफ़ान सब मैं सह गया
खंडहर सा हूँ पड़ा अहसास बाक़ी है अभी
अनवरत चलना मुझे है थक नहीं सकता हूँ मैं
हादसों में हौसला बिंदास बाकी है अभी
आज हैं तनहाइयाँ गुलज़ार था गुज़रा जो कल
ज़िंदगी सौगात है विश्वास बाकी है अभी
भीड़ है उमड़ी सड़क पर याद आया फिर वतन
हमवतन हैं साथ पर उच्छ्वास बाकी है अभी
लाॅकडाऊन से करोना की लड़ाई लड़ रहा
भूख से तू लड़ 'अमर' उपवास बाकी है अभी
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