ग़ज़ल:
अमर पंकज
(डाँ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
आग कैसी जल रही है आजकल
क्या वबा ये पल रही है आजकल
हाल अपना मैं कभी कहता नहीं
ख़ामुशी पर खल रही है आजकल
हर ख़बर तो क़हर ही बरपा रही
पाँव बिन जो चल रही है आजकल
धैर्य का कब ख़त्म होगा इम्तिहाँ
हर चमक तो ढल रही है आजकल
हो रही है बेअसर हर घोषणा
योजना हर टल रही है आजकल
नफ़रतों की लहलहाती फ़स्ल ही
ज़ह्र बनकर फल रही है आजकल
फिर 'अमर' गहरा अँधेरा जायेगा
जोर से लौ बल रही है आजकल
अमर पंकज
(डाँ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
आग कैसी जल रही है आजकल
क्या वबा ये पल रही है आजकल
हाल अपना मैं कभी कहता नहीं
ख़ामुशी पर खल रही है आजकल
हर ख़बर तो क़हर ही बरपा रही
पाँव बिन जो चल रही है आजकल
धैर्य का कब ख़त्म होगा इम्तिहाँ
हर चमक तो ढल रही है आजकल
हो रही है बेअसर हर घोषणा
योजना हर टल रही है आजकल
नफ़रतों की लहलहाती फ़स्ल ही
ज़ह्र बनकर फल रही है आजकल
फिर 'अमर' गहरा अँधेरा जायेगा
जोर से लौ बल रही है आजकल
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