सपना दिन में देखा, टूटा,
रहबर ने ही सबको लूटा।
कैसे कहें अफ़रा तफ़री में,
किसने किसको कितना कूटा।
अक्सर करता बात बड़ी जो,
होता है वह कद का बूटा।
दुनिया दारी समझी मैंने,
साथ तुम्हारा जबसे छूटा।
आज 'अमर' तुम बदले से हो,
पिघला पत्थर, झरना फूटा।
मुस्कुराने का सबब (ज़िंदगी की तलाश) आहऔर सिसकियाँ (सौगात-ए ज़िंदगी) "तू वफ़ा कर न कर ज़िंदगी, जी रहा मैं मगर ज़िंदगी।"
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