रविवार, 3 सितंबर 2017

एक इंच धरती स्वदेश की हम न छोड़ने वाले हैं

एक इंच धरती स्वदेश की हम न छोड़ने वाले हैं
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(प्रो ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज)
एक इंच धरती स्वदेश की हम न छोड़ने वाले हैं ।
आग उगलती तोपों से हम मुँह न मोड़ने वाले हैं ।।
हम हैं वीर भरत के वंशज, हम में प्रताप का पानी है।
कोटि चवालिश एक-एक हम शेर शिवा अभिमानी हैं ।।
कुँवर सिंह की अमिट निशानी आज हमें ललकार रही है ।
मर्दानी झाँसी की रानी कब से हमें पुकार रही है।।
वृद्ध हिमालय क्रुद्द कण्ठ से बार-बार हुँकार रहा है ।
क्षुब्ध सिंधु बन काल भुजंगम शत-शत फन फुत्कार रहा है ।।
आज शांति के अग्रदूत का सौम्य वदन अंगार हुआ है ।
भारत का बच्चा-बच्चा तक आज शत्रु हित काल हुआ है ।।
सावधान अविवेकी, तेरी नीति न चलने वाली है ।
राम-कृष्ण की भू पर तेरी दाल न गलने वाली है ।।
'हिमालय बोल रहा है' (काव्य संकलन,1963) से साभार। संग्राहक -- एस डब्लू सिन्हा (तत्कालीन जिला जनसम्पर्क पदाधिकारी, दुमका)। प्रकाशक -- जिला जनसम्पर्क विभाग, दुमका।

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