मेरी नज़्म ही मेरी आवाज़ है
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
09871603621
1.
एक-एक कर ढ़हने लगीं ईमारतें
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एक-एक कर ढ़हने लगीं ईमारतें
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एक-एक
कर ढ़हने लगी ईमारतें सारी रेत पर बनी लगती हैं
टूटी हूई इन बस्तियों में अब आदमी नहीं भीड़ ही दिखती है।
टूटी हूई इन बस्तियों में अब आदमी नहीं भीड़ ही दिखती है।
उम्र
भर कोशिश करते रहे हम धरोहरों को बचाए रखने की
मगर उजड़ गए गांवों की टीस यहाँ कहां किसी में दिखती है।
मगर उजड़ गए गांवों की टीस यहाँ कहां किसी में दिखती है।
लबालब
पोखर में पेड़ की फुनगी चढ़ कूद जाने की कशिश
बंद-साँसों गोता लगा तलहटी छूने की फितरत में दिखती है।
बंद-साँसों गोता लगा तलहटी छूने की फितरत में दिखती है।
जानता
हूँ जम्हुरियत की फसल अब ईंवीएम में लहराने लगी
धूर्त्तों को मिल गई चैन उनकी बेफ़िक्री की नींद में दिखती है।
धूर्त्तों को मिल गई चैन उनकी बेफ़िक्री की नींद में दिखती है।
कैसे
मर जाने दूँ जज़्बात और ज़िन्दा रहने का हौसला 'अमर'
पांडवों की साधना की परिणति ही तो महाभारत में दिखती है।
पांडवों की साधना की परिणति ही तो महाभारत में दिखती है।
2.
भगवान को ही बंधक बना लिया करते हैं
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भगवान को ही बंधक बना लिया करते हैं
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वो
हिन्दू-मुसलमां और मंदिर-मसजिद की सियासत किया करते हैं
अक्सर धरम के नाम पर भगवान को ही बंधक बना लिया करते हैं ।
अक्सर धरम के नाम पर भगवान को ही बंधक बना लिया करते हैं ।
ये
घिसे-पिटे लोग सियासतदां होने का दम भरते कभी नहीं थकते
गौर से देखा कर इन्हें सब के सब खाये-अघाये लोग हुआ करते हैं ।
गौर से देखा कर इन्हें सब के सब खाये-अघाये लोग हुआ करते हैं ।
दरअस्ल
जिन्दगी की जद्दोजहद भी एक सियासत ही है मेरे दोस्त
जिन्दा रहने की जंग में सियासत के भी मायने बदल जाया करते हैं ।
जिन्दा रहने की जंग में सियासत के भी मायने बदल जाया करते हैं ।
जमीं-आसमां
का फरक है उनकी और मेरी सियासत में हुजूर
करें वो वादा-ए-अफीम से बेसुध नज्मों से हम जगाया करते हैं।
करें वो वादा-ए-अफीम से बेसुध नज्मों से हम जगाया करते हैं।
इस
दौर में तो सियासात की बातें तो सभी किया करते हैं 'अमर'
मगर
सिरफ़ सच की सियासत हो इसीलिए तो गजल कहा करते हैं।
3.
कुछ ख्वाब कुछ हाकीकत
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कुछ ख्वाब कुछ हाकीकत
...................................
शायर
हूँ खुद की मर्जी से अशआर कहा करता हूँ
कहता हूँ कुछ ख्वाब कुछ हकीकत बयां करता हूँ।
कहता हूँ कुछ ख्वाब कुछ हकीकत बयां करता हूँ।
अपना
तो हुनर है तसव्वुर में दीदारे-दहर ऐ दोस्त
थोड़ा मिलकर भी सबकी पूरी खबर रखा करता हूँ।
थोड़ा मिलकर भी सबकी पूरी खबर रखा करता हूँ।
यूं
तो छुपाने की पुरजोर कोशिश किया करते आप
वो तो मैं हूँ के सोजे-निहाँ मुश्तहर किया करता हूँ।
वो तो मैं हूँ के सोजे-निहाँ मुश्तहर किया करता हूँ।
कैसे
कह दूँ दुनिया-ए-अदब का इल्म नहीं आपको
तमीज़ भी होती है खुद को फनकार कहा करता हूँ।
तमीज़ भी होती है खुद को फनकार कहा करता हूँ।
जमाने
की फितरत है सियासी-सितम जानते हैं 'अमर'
सच का सामना हो इसीलिए मैं गजल कहा करता हूं।
सच का सामना हो इसीलिए मैं गजल कहा करता हूं।
4.
जज्बात बचाए रखना
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शायर है तू अशआर कहने के अन्दाज़ बचाए रखना
नज्म़ लिखने गज़ल कहने के जज्बात बचाए रखना।
जज्बात बचाए रखना
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शायर है तू अशआर कहने के अन्दाज़ बचाए रखना
नज्म़ लिखने गज़ल कहने के जज्बात बचाए रखना।
वक्त
की नजाकत व मजबूरियों की बात सभी करते
सच से रु-ब-रु करा सकें जो वाकयात बचाए रखना।
सच से रु-ब-रु करा सकें जो वाकयात बचाए रखना।
हिला
ना सकी तेज आँधियां अपनी ज़ड़ों से तुमको
तुझे तकने लगीं हैं निगाहें ये लमहात बचाए रखना।
तुझे तकने लगीं हैं निगाहें ये लमहात बचाए रखना।
बेवक्त
की बारिश में कभी फसल नहीं उगा करती
ये दौर भी बदलेगा भरोसे के हालात बचाए रखना।
ये दौर भी बदलेगा भरोसे के हालात बचाए रखना।
बेखुदी
में अक्सर आईना देखते-दिखाते हो 'अमर'
दिलों को समझ सको वो एहसासात बचाए रखना।
दिलों को समझ सको वो एहसासात बचाए रखना।
5.
ग़ज़ल क्या कहे मैने
................................
ग़ज़ल क्या कहे मैने
................................
ग़ज़ल
क्या कहे मैंने तुम तो खबरदार हो गए
जज्बात जो भड़के मेरे सब तेरे तरफदार हो गए।
जज्बात जो भड़के मेरे सब तेरे तरफदार हो गए।
दुश्मनों
की कतार में तुमको नहीं रक्खा हमने
हम सावधान ना हुए और तुम असरदार हो गए।
हम सावधान ना हुए और तुम असरदार हो गए।
सितम
ढ़ाने के भी गजब तेरे अन्दाज हैं जालिम
जिनसे भी तुम हट के मिले वो सरमायेदार हो गए।
जिनसे भी तुम हट के मिले वो सरमायेदार हो गए।
कुछ
तो सिखलाते हो तुम दुनियादारी का सबब
यूँ ही नहीं मिलकर तुमसे कुछ तेरे तलबदार हो गए।
यूँ ही नहीं मिलकर तुमसे कुछ तेरे तलबदार हो गए।
कहते
हैं के अदब में अदावत नहीं होती है 'अमर'
अदावत की हुनर में तो अब तुम भी समझदार हो गए।
अदावत की हुनर में तो अब तुम भी समझदार हो गए।
6.
गफलत में है जमाना
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शबनम की ओट में हैं वो शोले गिरा रहे
गफलत में है जमाना जो महबूब समझ रहे।
गफलत में है जमाना
..................................
शबनम की ओट में हैं वो शोले गिरा रहे
गफलत में है जमाना जो महबूब समझ रहे।
नफ़ासत
से झुकते हैं वो क़त्ल के लिये
मासूमियत ये आपकी के सजदा बता रहे।
मासूमियत ये आपकी के सजदा बता रहे।
परोसते
फरेब हैं डूबो-डूबो के चाशनी में
कातिल भी आज खुद को मसीहा बता रहे।
कातिल भी आज खुद को मसीहा बता रहे।
लो
खैरात बांटते हैं रोज हमीं को लूटकर
लुटकर भी बेखुदी में हम जश्न मनाते रहे।
लुटकर भी बेखुदी में हम जश्न मनाते रहे।
रहबरी
का गुमां है तुझे तू तो मगरूर भी 'अमर'
पड़ गए सब पसोपेश में, तेरा गुरूर देखते रहे।
पड़ गए सब पसोपेश में, तेरा गुरूर देखते रहे।
7.
तेरे आने की ही आहट से
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तेरे आने की ही आहट से, मौसम का बदल जाना
परिन्दों का चहकना, या कलियों का मुस्कुराना।
तेरे आने की ही आहट से
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तेरे आने की ही आहट से, मौसम का बदल जाना
परिन्दों का चहकना, या कलियों का मुस्कुराना।
कल
के फ़ासले मिटाकर, अब गुफ़्तगू भी करना
नज्में भी उनका सुनना और ना नज़रें ही चुराना।
नज्में भी उनका सुनना और ना नज़रें ही चुराना।
बोलती
हुई सी आँखों से, हँस-हँस के ये बताना
अल्फाज भर नहीं, ना तुम बीता हुआ फसाना।
अल्फाज भर नहीं, ना तुम बीता हुआ फसाना।
पढ़
लेते हैं हाले-दिल जो, चेहरे की सिलवटों से
ही
सीने के जख्म सीकर भी, तुम यूँ मुस्कराते रहना।
सीने के जख्म सीकर भी, तुम यूँ मुस्कराते रहना।
दिलों
की बातें सुनना दिल से ही बातें करना 'अमर'
दिमागदारों की बस्ती में बस दिल को बचाए रखना।
दिमागदारों की बस्ती में बस दिल को बचाए रखना।
8.
सच कहने का मलाल कब तक करोगे
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ठहरो नहीं ऐ जिन्दगी तुम कभी, सरकती सही चलकर तो देखो।
बदली इबारत हर्फ़ को पढ़ो, बदलने का हुनर सीखकर तो देखो।
सच कहने का मलाल कब तक करोगे
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ठहरो नहीं ऐ जिन्दगी तुम कभी, सरकती सही चलकर तो देखो।
बदली इबारत हर्फ़ को पढ़ो, बदलने का हुनर सीखकर तो देखो।
रंग
व गुलाल में डूबा जमाना, कुछ देर तुम भी
थिरककर तो देखो।
रकीब भी हबीब से मिलेंगे यहाँ, बस जरा तुम मुस्कुराकर तो देखो।
रकीब भी हबीब से मिलेंगे यहाँ, बस जरा तुम मुस्कुराकर तो देखो।
दिखते
नशे में ये झूमते से लोग, करीब आप उनके जाकर तो
देखो।
धुआँ ही धुआँ चिलमनों के पीछे, बहकते दिलों को छूकर तो देखो।
धुआँ ही धुआँ चिलमनों के पीछे, बहकते दिलों को छूकर तो देखो।
सच
का मलाल कबतक करोगे, थकन से अगन को जलाकर तो देखो।
जमाना
जल रहा सियासी-अदावत, नफ़रतो की लपटें
बुझाकर तो देखो।
अगले
बरस भी तकती रहेंगी, दिलों में मुहब्बत
कुछ बचाकर तो देखो।
ता-उम्र संभलने की कोशिश क्यों, 'अमर' एक बार फिसलकर तो देखो।
ता-उम्र संभलने की कोशिश क्यों, 'अमर' एक बार फिसलकर तो देखो।
9.
इंतहा जुल्म का कितना बाकी बचा है
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नक़ाबपोशी की जरुरत किसे है यहाँ खुला खेल है दांव आजमाते हैं लोग
लम्हों में हबीब, लमहों में रकीब बड़ी फख्र से फितरत दिखाते हैं लोग।
इंतहा जुल्म का कितना बाकी बचा है
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नक़ाबपोशी की जरुरत किसे है यहाँ खुला खेल है दांव आजमाते हैं लोग
लम्हों में हबीब, लमहों में रकीब बड़ी फख्र से फितरत दिखाते हैं लोग।
इंकलाबी
नारों की रस्मी रवायत भी गूंजती फिजा में रोज लगाते हैं लोग
मादरे-वतन पे मिटने की कसमें भी अजान की तरह रोज सुनाते हैं लोग।
मादरे-वतन पे मिटने की कसमें भी अजान की तरह रोज सुनाते हैं लोग।
बेमानी
आज करना बातें सुकूँ का ग़ज़ल क्यों कहे है हकीकत बयानी
आज तुमपे नज़र है कल सबपे पड़ेगी खुद से ही आज बेखबर हैं लोग।
आज तुमपे नज़र है कल सबपे पड़ेगी खुद से ही आज बेखबर हैं लोग।
बदल
दूंगा आलम जुल्मते-सितम का घरों में दुबक कर बताते हैं लोग
बदला निज़ाम अब खाँसना मना है रुह काँप जाती सब जानते हैं लोग।
बदला निज़ाम अब खाँसना मना है रुह काँप जाती सब जानते हैं लोग।
इंतहा
जुल्म का कितना बाकी बचा आँखों में किसके कितना पानी बचा
किसकी रगों का खूँ उबलने लगा है 'अमर' वाकया सब जानते हैं लोग।
किसकी रगों का खूँ उबलने लगा है 'अमर' वाकया सब जानते हैं लोग।
10.
रुसवाइयों का जश्न
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दर्द के प्याले मेरे नसीब में भी कुछ कम न थे
दीगर थी बात कि, मैं पीता भी रहा मुस्कुराता भी रहा।
रुसवाइयों का जश्न
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दर्द के प्याले मेरे नसीब में भी कुछ कम न थे
दीगर थी बात कि, मैं पीता भी रहा मुस्कुराता भी रहा।
अब
कैसे कहें के फख्र था जिसकी यारी पे मुझे
वही तबीयत से रोज-रोज, दिल मेरा रुलाता भी रहा।
वही तबीयत से रोज-रोज, दिल मेरा रुलाता भी रहा।
हैरान
हूँ आप की इस मासूमियत पे ए दोस्त
मेरा साथ नागवार पे, औरों की महफ़िल सजाता रहा।
मेरा साथ नागवार पे, औरों की महफ़िल सजाता रहा।
मेरे
शिकवे को इस कदर थाम रक्खा है आपने
ये न देखा के हजारों जख्म, मैं खुदी से सहलाता रहा।
जरूरत थी बेइन्तिहा जिसकी तुझे ए 'अमर',
वो ही आज तुमसे, फासले का मीनार बनाता रहा।
ये न देखा के हजारों जख्म, मैं खुदी से सहलाता रहा।
जरूरत थी बेइन्तिहा जिसकी तुझे ए 'अमर',
वो ही आज तुमसे, फासले का मीनार बनाता रहा।
11.
अब मुझे देखने लगे लोग
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तमन्ना-ए-लबे-जाम दीवानगी मेरी अब मुझे देखने लगे लोग
ये शोखी नफासत सलासत तिरा मुतास्सिर होने लगे लोग।
अब मुझे देखने लगे लोग
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तमन्ना-ए-लबे-जाम दीवानगी मेरी अब मुझे देखने लगे लोग
ये शोखी नफासत सलासत तिरा मुतास्सिर होने लगे लोग।
दीदार
कर खुमारे-जिस्मे-नाजुक मिट गया शिद्दते-शौक मेरा
खिरमने-दिल का शरीके-हाल मुझसे ही अब कहने लगे लोग।
खिरमने-दिल का शरीके-हाल मुझसे ही अब कहने लगे लोग।
फिर
आरजू शबे-वस्ल की नवा-ए-ज़िगर खराश कहाँ
मैकदे में तनहाई व साकी-ए-शबाब में डूबने लगे लोग
मैकदे में तनहाई व साकी-ए-शबाब में डूबने लगे लोग
अजीब
रवायत तेरे निजाम की रींद भी चश्मदीद बन गए
पेशे-दस्ती-ए-बोसां को दौलत से अक्सर तौलने लगे लोग।
पेशे-दस्ती-ए-बोसां को दौलत से अक्सर तौलने लगे लोग।
आतिशे-दोजख
का क्या हकीके-इश्क सा जुनूं बढ़ गया 'अमर'
चूम लूं गुले-रंगे-रुखसार हया क्या अब सब जानने लगे लोग।
चूम लूं गुले-रंगे-रुखसार हया क्या अब सब जानने लगे लोग।
12.
आपको देखा किया है हमने
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हसरत भरी निगाहों से आपको देखा किया है हमने
अहले-करम हैं आपके जिनपे, उसने भी हाय यों कभी देखा होता।
आपको देखा किया है हमने
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हसरत भरी निगाहों से आपको देखा किया है हमने
अहले-करम हैं आपके जिनपे, उसने भी हाय यों कभी देखा होता।
ब-रु-ए
कार खड़ा कोई मजनूं वहां नहीं फिर भी साहिब
पैकरे-तस्वीर की मानिन्द दिल में उसने, आपको जों रक्खा होता।
पैकरे-तस्वीर की मानिन्द दिल में उसने, आपको जों रक्खा होता।
जौके-वस्ल
से हरदम आपने दिया किया है जिस्त का मजा लेकिन
महरुम-ए-किस्मत पुरकरी छोड, उसने सादगी जों जाना होता।
महरुम-ए-किस्मत पुरकरी छोड, उसने सादगी जों जाना होता।
ज़ियां-वो-सूद
की फिकर में भटकता दूदे-चरागे महफिल की तरह
चरागे-शम्मा में मुज़्मर रूहे-वफा को, कभी तो उसने परखा होता।
चरागे-शम्मा में मुज़्मर रूहे-वफा को, कभी तो उसने परखा होता।
नासमझ
कहे दुनिया तो क्या चूम लूं राहे-फना भी 'अमर'
सोजे-निहां जल रहा है काश, तुझे भी उसने कभी समझा होता।
सोजे-निहां जल रहा है काश, तुझे भी उसने कभी समझा होता।
13.
गजब की तूने दोस्ती निभाई है
...............................................
ऐ दोस्त क्या गजब की तूने दोस्ती निभाई है
के दोस्ती भी आज एक रफ़िक से शरमाई है।
गजब की तूने दोस्ती निभाई है
...............................................
ऐ दोस्त क्या गजब की तूने दोस्ती निभाई है
के दोस्ती भी आज एक रफ़िक से शरमाई है।
मोहब्बत
में अदावत अब कोई सीखे तुमसे
तेरी तासीर ही जुल्मते-जहराव और बेवफाई है।
तेरी तासीर ही जुल्मते-जहराव और बेवफाई है।
सब
रिन्द हैं यहाँ कौन देखे दर्दे-निहाँ किसी का
इस महफ़िल में तो सिर्फ अफसुर्दगी गहराई है।
इस महफ़िल में तो सिर्फ अफसुर्दगी गहराई है।
दिल
की खिलवतों में मस्तूर थी शोखे-तमन्ना
अब ये सोजे-जिगर भी तेरे तोहफे की रूसवाई है।
अब ये सोजे-जिगर भी तेरे तोहफे की रूसवाई है।
है दिल्ली
की दुनिया में दिल महज एक खिलौना
'अमर' कहां यहाँ ज़ज्बात और कहां यहाँ पुरवाई है।
'अमर' कहां यहाँ ज़ज्बात और कहां यहाँ पुरवाई है।
14.
सब दिन याद रक्खें
.................................
वो आपने दी सीख जो के सब दिन याद रक्खें
फिर जिंदगी ने लीं करवटें सब दिन याद रक्खें।
चाँद छूने की ख़्वाहिश थी बादलों को चीरकर
मिल गया चाँद जा बादलों से सब दिन याद रक्खें।
फिक्र थी कब दुश्मनों की पर आज बेरुख आप हैं
बेरुखी भी तो आपकी सब दिन याद रक्खें।
ये वक्त ना ठंढ़े बदन या दिल के शोले-इश्क़ का
शबनम सी हँसी दे दीजिये सब दिन याद रक्खें।
यूँ तो अपनी बेखुदी पर हँसता है रोज 'अमर'
अब आप ऐसे हँस दिए के सब दिन याद रक्खें।
सब दिन याद रक्खें
.................................
वो आपने दी सीख जो के सब दिन याद रक्खें
फिर जिंदगी ने लीं करवटें सब दिन याद रक्खें।
चाँद छूने की ख़्वाहिश थी बादलों को चीरकर
मिल गया चाँद जा बादलों से सब दिन याद रक्खें।
फिक्र थी कब दुश्मनों की पर आज बेरुख आप हैं
बेरुखी भी तो आपकी सब दिन याद रक्खें।
ये वक्त ना ठंढ़े बदन या दिल के शोले-इश्क़ का
शबनम सी हँसी दे दीजिये सब दिन याद रक्खें।
यूँ तो अपनी बेखुदी पर हँसता है रोज 'अमर'
अब आप ऐसे हँस दिए के सब दिन याद रक्खें।
15.
अहबाबे-दस्तूर
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इस शहर में अहबाबे-दस्तूर निराली है
रफीक-बावले की कदम-कदम पे रुस्वाई है।
राहे-हस्ती का हमराज बनाया था आपने ही
निभाई ना गई तो अब ये इल्जामे-बेवफाई है।
मस्तूर थी तमन्ना-ए-शोख दिल की खिलवतों में
तोहफा तिरा भी दोस्त क्या सोजे-ज़िगर है।
सुन सुकुत की सदाएं देख दर्दे-निहां हमारा
ये बेरुखी भी आपकी मैने दिल से लगाई है।
दिल की दुनिया में मत पूछ 'अमर' कीमत अपनी
आबे-फिरदौस छोड़ा तूने रस्मे-दोस्ती निभाई है।
अहबाबे-दस्तूर
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इस शहर में अहबाबे-दस्तूर निराली है
रफीक-बावले की कदम-कदम पे रुस्वाई है।
राहे-हस्ती का हमराज बनाया था आपने ही
निभाई ना गई तो अब ये इल्जामे-बेवफाई है।
मस्तूर थी तमन्ना-ए-शोख दिल की खिलवतों में
तोहफा तिरा भी दोस्त क्या सोजे-ज़िगर है।
सुन सुकुत की सदाएं देख दर्दे-निहां हमारा
ये बेरुखी भी आपकी मैने दिल से लगाई है।
दिल की दुनिया में मत पूछ 'अमर' कीमत अपनी
आबे-फिरदौस छोड़ा तूने रस्मे-दोस्ती निभाई है।
16.
गम संभाल रक्खें
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महफिल में गुरेजा किया आपने के सब दिन याद रक्खें
नहीं दी मुहब्बत तो क्या निशाते-कोहे-गम संभाल रक्खें।
मौजे-खिरामे-यार की कशिश हश्र तलक याद रक्खें
ये कस्दे-गुरेज भी आपकी है के सब दिन याद रक्खें।
तलातुम से घिरा तिशना हूँ इजहारे-हाल छिपाए रक्खें
कशाने इश्क़ हूँ तो फरियाद क्यों पासे-दर्द याद रक्खें।
रफू-ए-जख्म ना अब देख चश्मे फुसूंगर याद रक्खें
शबे-हिजराँ की तमन्ना में ऐशे-बेताबी याद रक्खें।
आसा तो नहीं यूं ख़ुद की बेखुदी पे हँसना 'अमर'
मगर आप मुहाल हँसे सारे-बज़्म के सब दिन याद रक्खें।
गम संभाल रक्खें
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महफिल में गुरेजा किया आपने के सब दिन याद रक्खें
नहीं दी मुहब्बत तो क्या निशाते-कोहे-गम संभाल रक्खें।
मौजे-खिरामे-यार की कशिश हश्र तलक याद रक्खें
ये कस्दे-गुरेज भी आपकी है के सब दिन याद रक्खें।
तलातुम से घिरा तिशना हूँ इजहारे-हाल छिपाए रक्खें
कशाने इश्क़ हूँ तो फरियाद क्यों पासे-दर्द याद रक्खें।
रफू-ए-जख्म ना अब देख चश्मे फुसूंगर याद रक्खें
शबे-हिजराँ की तमन्ना में ऐशे-बेताबी याद रक्खें।
आसा तो नहीं यूं ख़ुद की बेखुदी पे हँसना 'अमर'
मगर आप मुहाल हँसे सारे-बज़्म के सब दिन याद रक्खें।
17.
दिल पारा-पारा हुआ
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क्या हुआ जो पायी तेरे दर पे रुसवाई हमने
दिल पारा-पारा हुआ पर रस्मे-अहबाब तो निभाई हमने।
दस्तूर है ये न देख दिले-बहशी की जानिब
इश्क़ की इंतहां का यही सुरूर इसे दिल से लगाई हमने।
जिगर जला-जला करके मिटाता रहा वजूदे-हस्ती
वैसे भी दो पल के लिए तेरी बाहों की तमन्ना जगाई हमने।
गुंचों से मुहब्बत की है तो खारों की परवाह न कर
सीने से लगा अब परहेज नहीं इश्क़ की रीत बताई हमने।
एतमादे-नजर ही नहीं सीरत भी देख कहते वो 'अमर'
पशेमान हूँ क्या कहूँ सूरते-हुश्न से नजर अभी हटाई हमने।
दिल पारा-पारा हुआ
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क्या हुआ जो पायी तेरे दर पे रुसवाई हमने
दिल पारा-पारा हुआ पर रस्मे-अहबाब तो निभाई हमने।
दस्तूर है ये न देख दिले-बहशी की जानिब
इश्क़ की इंतहां का यही सुरूर इसे दिल से लगाई हमने।
जिगर जला-जला करके मिटाता रहा वजूदे-हस्ती
वैसे भी दो पल के लिए तेरी बाहों की तमन्ना जगाई हमने।
गुंचों से मुहब्बत की है तो खारों की परवाह न कर
सीने से लगा अब परहेज नहीं इश्क़ की रीत बताई हमने।
एतमादे-नजर ही नहीं सीरत भी देख कहते वो 'अमर'
पशेमान हूँ क्या कहूँ सूरते-हुश्न से नजर अभी हटाई हमने।
18.
बेरुह मशीनों सी चल रही है जिंदगी
.........................................................
क्या बेरुह मशीनों सी चल रही है ज़िन्दगी तेरी
या ता-उम्र बे-ठौर ही भगती रहेगी जिंदगी तेरी
ये मकान ये दुकान रिश्तेदारियाँ ठीक हैं लेकिन
कुछ लमहात तो चुरा संवर जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
हाँ रब ने तो नवाजा है फ़ने-आशआर से तुमको
महफिलों को रंग दे खिल जाएगी ज़िन्दगी तेरी
माना कि तेरे हुश्न के क़द्रदान बहुत होंगे मगर
इल्म की कदर कर बदल जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
मंजिले-मक़सूद मिलता नहीं कौनेने-गलेमर की सिम्त
ये इज़ारे-सुख़न है 'अमर' यूँ छूट जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
बेरुह मशीनों सी चल रही है जिंदगी
.........................................................
क्या बेरुह मशीनों सी चल रही है ज़िन्दगी तेरी
या ता-उम्र बे-ठौर ही भगती रहेगी जिंदगी तेरी
ये मकान ये दुकान रिश्तेदारियाँ ठीक हैं लेकिन
कुछ लमहात तो चुरा संवर जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
हाँ रब ने तो नवाजा है फ़ने-आशआर से तुमको
महफिलों को रंग दे खिल जाएगी ज़िन्दगी तेरी
माना कि तेरे हुश्न के क़द्रदान बहुत होंगे मगर
इल्म की कदर कर बदल जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
मंजिले-मक़सूद मिलता नहीं कौनेने-गलेमर की सिम्त
ये इज़ारे-सुख़न है 'अमर' यूँ छूट जाएगी ज़िन्दगी तेरी।
19.
नादानी होगी
.......................
खुद के जज़्बात को ना समझाआपकी ही नादानी होगी
मअरकां-ए-जां ने नाशाद किया ये भी गलतबयानी होगी
संगे-मोती की परख तो मुझे भी कुछ कम न रही हुजूर
ज़ुदा ये बात कुछ सुर्ख-रु-आरिजों की रही मनमानी होगी।
होती शर्ते-वफा नहीं रिश्ता-ए-खूं की भी मेरे रहनुमा
हमराज़ कहो तो हर्फे-अल्फ़ाज को पढ़नी बेजुबानी होगी
इतमीनान रख यूं जिगर होता नहीं किसी का चाक-चाक
बस कोहे-गम की फ़ितरत गम-ख्वार को समझानी होगी।
गर चीख-चीखकर करूँ बयां तो भी क्या होगा 'अमर'
अब भीड़-ए-तमाशाई बनना चौराहे-आम बेमानी होगी।
नादानी होगी
.......................
खुद के जज़्बात को ना समझाआपकी ही नादानी होगी
मअरकां-ए-जां ने नाशाद किया ये भी गलतबयानी होगी
संगे-मोती की परख तो मुझे भी कुछ कम न रही हुजूर
ज़ुदा ये बात कुछ सुर्ख-रु-आरिजों की रही मनमानी होगी।
होती शर्ते-वफा नहीं रिश्ता-ए-खूं की भी मेरे रहनुमा
हमराज़ कहो तो हर्फे-अल्फ़ाज को पढ़नी बेजुबानी होगी
इतमीनान रख यूं जिगर होता नहीं किसी का चाक-चाक
बस कोहे-गम की फ़ितरत गम-ख्वार को समझानी होगी।
गर चीख-चीखकर करूँ बयां तो भी क्या होगा 'अमर'
अब भीड़-ए-तमाशाई बनना चौराहे-आम बेमानी होगी।
20.
जब से मेरी ज़िन्दगी में आप आ गए
.......................................................
जब से हुज़ूर मेरी ज़िन्दगी में आप आ गए
ज़िन्दगी ने अपने पते-ठिकाने बदल लिए।
पता न था कि आप मेरी मंजिल थे मगर
गुसले-मौजे-हयात के कायदे सीखा दिए।
पहिले तो मैं बेफिक्र था बेख़ुद भी था जनाब
तारक़-ए-दुनियाँ से अब मुतबिर बना दिए।
फ़ज़ाओं के साथ भटकती थी मेरी रुह भी कभी
बीत चुके अब वो बेदरे-वक्त आप सब सह गए।
शुक्रिया कहूँगा नहीं ये इक एहसास है 'अमर'
देख लीजिये आप आज हम आपके ही रह गए।
जब से मेरी ज़िन्दगी में आप आ गए
.......................................................
जब से हुज़ूर मेरी ज़िन्दगी में आप आ गए
ज़िन्दगी ने अपने पते-ठिकाने बदल लिए।
पता न था कि आप मेरी मंजिल थे मगर
गुसले-मौजे-हयात के कायदे सीखा दिए।
पहिले तो मैं बेफिक्र था बेख़ुद भी था जनाब
तारक़-ए-दुनियाँ से अब मुतबिर बना दिए।
फ़ज़ाओं के साथ भटकती थी मेरी रुह भी कभी
बीत चुके अब वो बेदरे-वक्त आप सब सह गए।
शुक्रिया कहूँगा नहीं ये इक एहसास है 'अमर'
देख लीजिये आप आज हम आपके ही रह गए।
21.
हमारी आँखों में आओ तो
.....................................
आँखों में आओ तो बाताएँ तेरी खता क्या है
शोख-हसीनों को रोज सताने की अदा क्या है।
फरिश्ता नहीं दीवाना हूँ यही रहने दो मुझे
बेकरारियों से पूछो कि लुत्फ़े-आशिक़ी क्या है।
महकते हुए अंफ़ास व लरजते हुए अल्फ़ाज़ तेरे
सिरफ़ हमीं जानते हैं कि तेरे आलमे-हुश्न क्या है।
बार-बार जख्मे-ज़िगर ने किया है ख़ुश्क ज़िंदगी
निगाहें आज भी तकती हैं के इशारे-बुलबुल क्या है।
कैसे भूल जाऊँ लहजा-ए-तरन्नुम की गुफ्तगू 'अमर'
ब-हर-तौर वकीफ़े-राज तू खुदा-रा और रक्खा क्या है।
हमारी आँखों में आओ तो
.....................................
आँखों में आओ तो बाताएँ तेरी खता क्या है
शोख-हसीनों को रोज सताने की अदा क्या है।
फरिश्ता नहीं दीवाना हूँ यही रहने दो मुझे
बेकरारियों से पूछो कि लुत्फ़े-आशिक़ी क्या है।
महकते हुए अंफ़ास व लरजते हुए अल्फ़ाज़ तेरे
सिरफ़ हमीं जानते हैं कि तेरे आलमे-हुश्न क्या है।
बार-बार जख्मे-ज़िगर ने किया है ख़ुश्क ज़िंदगी
निगाहें आज भी तकती हैं के इशारे-बुलबुल क्या है।
कैसे भूल जाऊँ लहजा-ए-तरन्नुम की गुफ्तगू 'अमर'
ब-हर-तौर वकीफ़े-राज तू खुदा-रा और रक्खा क्या है।
22.
दास्ताँ-ए-जांकनी
.............................
पासबां के कफ़स में गुम-गुस्ता अदम तू
सुन के दास्ताँ-ए-जांकनी चश्म तर हो गया।
सिर्फ हमीं थे शाहिद उलफते-बहम के
मशीयते-फ़ितरत ये अब मुश्तहर हो गया।
ताबिशे-छुअन तेरी नर्मगी हथेलियों की
क़ल्ब में खुशरंग मदहोशियाँ भर गया।
दम-ब-खुद तेरे घर से हम वापिस हुये थे
बिलयकीं फ़र्ते-उल्फ़ते पे आयां हो गया।
अफकार नहीं अब तजलील की 'अमर'
संगमरमरी जिस्म तिरा रूह में ढल गया।
दास्ताँ-ए-जांकनी
.............................
पासबां के कफ़स में गुम-गुस्ता अदम तू
सुन के दास्ताँ-ए-जांकनी चश्म तर हो गया।
सिर्फ हमीं थे शाहिद उलफते-बहम के
मशीयते-फ़ितरत ये अब मुश्तहर हो गया।
ताबिशे-छुअन तेरी नर्मगी हथेलियों की
क़ल्ब में खुशरंग मदहोशियाँ भर गया।
दम-ब-खुद तेरे घर से हम वापिस हुये थे
बिलयकीं फ़र्ते-उल्फ़ते पे आयां हो गया।
अफकार नहीं अब तजलील की 'अमर'
संगमरमरी जिस्म तिरा रूह में ढल गया।
23.
उन हसीन लम्हों ने
.................................
उन हसीन लम्हों ने
.................................
क्या
जादू किया हसीन लम्हों ने सदा आ रही आज आपके लिए
दिल मुर्दा पड़ा था फिर धड़कने लगा आज आपके लिए।
आपके पहलू में हूँ क़ज़ा आए फ़िलवक्त कोई गम नहीं
बयां हो रहे ये अब हसीन खयालात सिरफ आपके लिए।
हवाओं के साथ उड़ना व अंगुलियों की छुअन भी ताजी है
शबे-फुरकत ढली आरजू-ए-मुहब्बत आज आपके लिए।
भड़कते जज़्बात ढलकते अंदाज व लरज़ते अल्फ़ाज़ मेरे
जज़्बा-ए-दिल औ मशरुफ़ मन है सिरफ आपके लिए।
फिर आप रुसवा न होंगे जमाने में कभी अब 'अमर'
जर्रा-जर्रा हलाल मजहबे-इश्के-पयाम है ये आपके लिए।
दिल मुर्दा पड़ा था फिर धड़कने लगा आज आपके लिए।
आपके पहलू में हूँ क़ज़ा आए फ़िलवक्त कोई गम नहीं
बयां हो रहे ये अब हसीन खयालात सिरफ आपके लिए।
हवाओं के साथ उड़ना व अंगुलियों की छुअन भी ताजी है
शबे-फुरकत ढली आरजू-ए-मुहब्बत आज आपके लिए।
भड़कते जज़्बात ढलकते अंदाज व लरज़ते अल्फ़ाज़ मेरे
जज़्बा-ए-दिल औ मशरुफ़ मन है सिरफ आपके लिए।
फिर आप रुसवा न होंगे जमाने में कभी अब 'अमर'
जर्रा-जर्रा हलाल मजहबे-इश्के-पयाम है ये आपके लिए।
24.
दिल के करीब कोई और है
......................................
तू शरीके-हयात किसी और की मुझे है ये खबर ऐ गुल-बदन
तेरे दिल के करीब कोई और है जिसे सौप दिया तूने जां-ओ-तन।
कर हदें दिल की पार रूह छूने लगी अब तेरे देह की महक
परवाह किसकी खुदाई में अब हो रहा मुकद्दर आजमाने का मन।
दबे होठों सही पयामे-मुहब्बत को आपने भी तो तस्लीम की है
छिन रहा है करार अब चिंगारियों से ही सुलगने लगा मेरा तन।
चुप है जुबा देर से हुजूर आप निगाहों को भी अब सुना कीजिए
मुहब्बत बन गयी जिन्दगी अब मेरी दिल में फूंका का जो है तूने अगन।
डूबा अगर दरिया-ए-इश्क में कयामत का इंतजार किसे है 'अमर'
बर्बादियो का सबब लोग पूछेंगे उनसे जिनमें है मन मेरा मगन।
दिल के करीब कोई और है
......................................
तू शरीके-हयात किसी और की मुझे है ये खबर ऐ गुल-बदन
तेरे दिल के करीब कोई और है जिसे सौप दिया तूने जां-ओ-तन।
कर हदें दिल की पार रूह छूने लगी अब तेरे देह की महक
परवाह किसकी खुदाई में अब हो रहा मुकद्दर आजमाने का मन।
दबे होठों सही पयामे-मुहब्बत को आपने भी तो तस्लीम की है
छिन रहा है करार अब चिंगारियों से ही सुलगने लगा मेरा तन।
चुप है जुबा देर से हुजूर आप निगाहों को भी अब सुना कीजिए
मुहब्बत बन गयी जिन्दगी अब मेरी दिल में फूंका का जो है तूने अगन।
डूबा अगर दरिया-ए-इश्क में कयामत का इंतजार किसे है 'अमर'
बर्बादियो का सबब लोग पूछेंगे उनसे जिनमें है मन मेरा मगन।
25.
दीवानों की तरह
........................
सूरते-दीदार दिल तो में ही रह गया यरब
पर लोग देखने लगे मुझे दीवानों की तरह।
मुकर्रर किया वक्त आप ने ही गर याद हो
आपके बिना भीड़ लगी बयाबानों की तरह।
दीवानों की तरह
........................
सूरते-दीदार दिल तो में ही रह गया यरब
पर लोग देखने लगे मुझे दीवानों की तरह।
मुकर्रर किया वक्त आप ने ही गर याद हो
आपके बिना भीड़ लगी बयाबानों की तरह।
दूंदे-सीगार
ही हमदम था मेरी तन्हाइयों का
जले दिल को ही जलता रहा शायर की तरह।
नजरे-गुरेज किया हर पहचाने चेहरे से
घूरते रहे लोग हमें अजनबी की तरह।
कल की गुफ्तगू की तासीर बाकी थी 'अमर'
जमीन से चिपके रहे हम एक बुत की तरह।
जले दिल को ही जलता रहा शायर की तरह।
नजरे-गुरेज किया हर पहचाने चेहरे से
घूरते रहे लोग हमें अजनबी की तरह।
कल की गुफ्तगू की तासीर बाकी थी 'अमर'
जमीन से चिपके रहे हम एक बुत की तरह।
26.
उदास दरख्तों के साये में
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खामोश वादियों की खामोशी का सफर
उदास दरख्तों के साये में सहमी डगर।
परिन्दे भी चुप मेरी तन्हाईयों के गवाह
हुआ करता कभी यहीं हमारा भी घर।
गुजारी है हमने यहाँ महकती हुई शाम
कैसे घुल गया अब इस फिजा में जहर।
बेनूर दिख रही आज हर कली यहाँ की
उजड़ा चमन लगी इसे किसकी नज़र।
बदली नियत बागबां जो बन गए ‘अमर’
ऐ सियासत तुझे इसकी क्या कोई खबर।
उदास दरख्तों के साये में
-----------------------------------
खामोश वादियों की खामोशी का सफर
उदास दरख्तों के साये में सहमी डगर।
परिन्दे भी चुप मेरी तन्हाईयों के गवाह
हुआ करता कभी यहीं हमारा भी घर।
गुजारी है हमने यहाँ महकती हुई शाम
कैसे घुल गया अब इस फिजा में जहर।
बेनूर दिख रही आज हर कली यहाँ की
उजड़ा चमन लगी इसे किसकी नज़र।
बदली नियत बागबां जो बन गए ‘अमर’
ऐ सियासत तुझे इसकी क्या कोई खबर।
27.
गुलों की बहार
------------------------------
गुल को देखें कि देखें चमन में इन गुलों की बहार
मुद्दतों किया है हमने भी इन लमहों का इन्तजार।
दिलकश अन्दाज और कहर ढाती सी नीयत उनकी
मासूमियत से वो गिराती रही हैं हर सब्र की दीवार।
महकती हुई साँसें और लरजते हुए से होठ उनके
चाँदनी बदन की खनक करती है सबको बेकरार।
कत्ल करती शोखियों का चल रहा है ये सिलसिला
भड़के हुए जज्बात को तन्हा मुलाकात की दरकार।
वो खुदा का नूर 'अमर' अब, लुटने का किसे होश यहाँ
इश्क-ए-रूहानी कायनात अपलक करता रहा दीदार।
गुलों की बहार
------------------------------
गुल को देखें कि देखें चमन में इन गुलों की बहार
मुद्दतों किया है हमने भी इन लमहों का इन्तजार।
दिलकश अन्दाज और कहर ढाती सी नीयत उनकी
मासूमियत से वो गिराती रही हैं हर सब्र की दीवार।
महकती हुई साँसें और लरजते हुए से होठ उनके
चाँदनी बदन की खनक करती है सबको बेकरार।
कत्ल करती शोखियों का चल रहा है ये सिलसिला
भड़के हुए जज्बात को तन्हा मुलाकात की दरकार।
वो खुदा का नूर 'अमर' अब, लुटने का किसे होश यहाँ
इश्क-ए-रूहानी कायनात अपलक करता रहा दीदार।
28.
ऐ जिन्दगी
-----------------
चहक-चहक कर जीना है तुझे ऐ जिन्दगी जी भरकर
छक-छक कर पीना रस तेरा ऐ जिन्दगी जी भरकर।
पास आ रही मौत को भी आज ही कह दिया है मैनें
लौट जा यहाँ से तुम फासले बना अभी दूर रहकर।
अभी तक तो है बसेरा चाहने वाले दिलों में ही मेरा
अनगिनत हाथ खड़े हैं आज दुआ में कवच बनकर।
पुतलियों की कोर से यूँ जब कभी छलक जाते आँसू
चूम लेते हैं वो उन्मत्त होठ झट से उन्हें आगे बढ़कर।
मौत से मिलन की वो घड़ी जब कभी आएगी 'अमर'
सीने से लगा लेंगे उसे लिपट जाएंगे तब बाहें भरकर।
ऐ जिन्दगी
-----------------
चहक-चहक कर जीना है तुझे ऐ जिन्दगी जी भरकर
छक-छक कर पीना रस तेरा ऐ जिन्दगी जी भरकर।
पास आ रही मौत को भी आज ही कह दिया है मैनें
लौट जा यहाँ से तुम फासले बना अभी दूर रहकर।
अभी तक तो है बसेरा चाहने वाले दिलों में ही मेरा
अनगिनत हाथ खड़े हैं आज दुआ में कवच बनकर।
पुतलियों की कोर से यूँ जब कभी छलक जाते आँसू
चूम लेते हैं वो उन्मत्त होठ झट से उन्हें आगे बढ़कर।
मौत से मिलन की वो घड़ी जब कभी आएगी 'अमर'
सीने से लगा लेंगे उसे लिपट जाएंगे तब बाहें भरकर।
29.
चराग जलाकर आया हूँ
-------------------------
लम्बी स्याह रात में इक चराग जलाकर आया हूँ
मौत के आगोश से जिन्दगी को छीनकर लाया हूँ।
विवश-बेचैन हो जो उमड़े थे मजबूरियों के आँसू
प्यार की जुम्बिशों से आज उन्हें सोख आया हूँ।
चलो चलें गांव अपने अभी जिन्दगी जिन्दा है वहाँ
कई बरस पहले जहाँ कुछ शरारतें छोड़ आया हूँ।
दिखाया न तुमको कभी दरकती छत की टपकती बूंदें
लेकिन खिलती है जिन्दगी यहाँ ये राज बताने आया हूँ।
कोहरा घना है माना पर 'अमर' नहीं छिपता उजाला
बादलों को चीर निकलता आफताब देखने आया हूँ।
चराग जलाकर आया हूँ
-------------------------
लम्बी स्याह रात में इक चराग जलाकर आया हूँ
मौत के आगोश से जिन्दगी को छीनकर लाया हूँ।
विवश-बेचैन हो जो उमड़े थे मजबूरियों के आँसू
प्यार की जुम्बिशों से आज उन्हें सोख आया हूँ।
चलो चलें गांव अपने अभी जिन्दगी जिन्दा है वहाँ
कई बरस पहले जहाँ कुछ शरारतें छोड़ आया हूँ।
दिखाया न तुमको कभी दरकती छत की टपकती बूंदें
लेकिन खिलती है जिन्दगी यहाँ ये राज बताने आया हूँ।
कोहरा घना है माना पर 'अमर' नहीं छिपता उजाला
बादलों को चीर निकलता आफताब देखने आया हूँ।
30.
दिल खोलकर मिले
----------------------
दिल खोलकर मिले थे मिलके बातें बहुत की
कुछ हाल-हाल की बातें कुछ बीते दिनों की।
सियासत किसी को तो रास आती नहीं थी
तो बातें दुनियादारी की बातें जिम्मेदारी की।
दिल के चिथडों को सफाई से छुपाया था सबने
झूठी खुशियाँ जताने को सबने बातें बहुत की।
उम्र भर संजोकर सबने रखी थी जतन से
कभी फुर्सत से होगी सबसे गुफ्तगू दिलों की।
फुर्सत किसे आज 'अमर' दिल की बातें सुने कौन
सिमटी है जिन्दगी खुद में ये फितरत जमाने की।
दिल खोलकर मिले
----------------------
दिल खोलकर मिले थे मिलके बातें बहुत की
कुछ हाल-हाल की बातें कुछ बीते दिनों की।
सियासत किसी को तो रास आती नहीं थी
तो बातें दुनियादारी की बातें जिम्मेदारी की।
दिल के चिथडों को सफाई से छुपाया था सबने
झूठी खुशियाँ जताने को सबने बातें बहुत की।
उम्र भर संजोकर सबने रखी थी जतन से
कभी फुर्सत से होगी सबसे गुफ्तगू दिलों की।
फुर्सत किसे आज 'अमर' दिल की बातें सुने कौन
सिमटी है जिन्दगी खुद में ये फितरत जमाने की।
31.
सुबह का ये सूरज
--------------------------
सुबह का ये सूरज तुम्हारे लिए है
सुबह का ये सूरज हमारे लिए है।
उदासियों की शामें बीती कहानी है
सुहाना सफर आज हमारे लिए है।
झूमती पवन संग कूक रही कोयल
रुत भी गा रही गीत हमारे लिए है।
रहनुमा ही वतन के लुटेरे बन गए
चमन की गुहार ये हमारे लिए है।
जमीं सुर्ख आज 'अमर' अपनों के खूँ से
कुर्बानियों की सदाऐं अब हमारे लिए है।
सुबह का ये सूरज
--------------------------
सुबह का ये सूरज तुम्हारे लिए है
सुबह का ये सूरज हमारे लिए है।
उदासियों की शामें बीती कहानी है
सुहाना सफर आज हमारे लिए है।
झूमती पवन संग कूक रही कोयल
रुत भी गा रही गीत हमारे लिए है।
रहनुमा ही वतन के लुटेरे बन गए
चमन की गुहार ये हमारे लिए है।
जमीं सुर्ख आज 'अमर' अपनों के खूँ से
कुर्बानियों की सदाऐं अब हमारे लिए है।
32.
भुलावे में रहा करते हैं
-----------------------------
हमें तिनका समझकर अक्सर वो भुलावे में रहा करते हैं
"पठार का धीरज" के माने भी कुछ लोग नहीं जाना करते हैं।
गुमां बहुत है उनको बहती हुई दरिया को बाँध लेने का
उन्हें क्या पता समन्दरों के तूफान मेरे सीने में पला करते हैं।
खून का ईंधन जलाकर लोगों को मंजिल तक पहुँचाने वाले
अंधे-विकास की आँधियों के दौर में भी भटका नहीं करते हैं।
उनके नखरे मुद्दतों से बेबशी में उठाते चले आ रहे हैं लोग
याद रख गाड़ी के पहिये कभी दलदलों में नहीं चला करते हैं।
एक दीया ही काफी है 'अमर' अंधेरों को भगाने के लिए
मेरे आँगन में रोज सुबह-शाम सूरज और चाँद आया करते हैं ।
भुलावे में रहा करते हैं
-----------------------------
हमें तिनका समझकर अक्सर वो भुलावे में रहा करते हैं
"पठार का धीरज" के माने भी कुछ लोग नहीं जाना करते हैं।
गुमां बहुत है उनको बहती हुई दरिया को बाँध लेने का
उन्हें क्या पता समन्दरों के तूफान मेरे सीने में पला करते हैं।
खून का ईंधन जलाकर लोगों को मंजिल तक पहुँचाने वाले
अंधे-विकास की आँधियों के दौर में भी भटका नहीं करते हैं।
उनके नखरे मुद्दतों से बेबशी में उठाते चले आ रहे हैं लोग
याद रख गाड़ी के पहिये कभी दलदलों में नहीं चला करते हैं।
एक दीया ही काफी है 'अमर' अंधेरों को भगाने के लिए
मेरे आँगन में रोज सुबह-शाम सूरज और चाँद आया करते हैं ।
33.
दर्द हुआा करता है
________________
बेतहाशा बदहवास बेसुध भागते हो तो रश्क नहीं दर्द हुआ करता है
अच्छी तरह वाकिफ हूँ कि लड़खड़ाने से सिर्फ हादसा हुआ करता है।
दिल की गहराईयों से बंद आँखों में झांककर कुछ टटोलो तो सही
मन की आँखों का रिश्ता अक्सर दर्दे-दिल से जुड़ा हुआ करता है।
सिर्फ हवादिशें नहीं थी वह खुद खुदा का ऐतबार भी था मुझपर
जज्बा-ए-जुनूं-ए-कायनात उसका मुझसे ही तो उजागर हुआ करता है ।
जल जंगल जमीन की दौलत से लाख तिजोरी भरते रहो उनकी लेकिन
कोयला दबकर कभी कोहिनूर तो दहककर कभी अंगार हुआ करता है।
जख्मे-जिस्म भूलकर जमाने भर का जहर रोज तुम पीते रहो 'अमर'
हयाते-दहर को बचाकर ही कोई युगों-युगों से नीलकंठ हुआ करता है ।
दर्द हुआा करता है
________________
बेतहाशा बदहवास बेसुध भागते हो तो रश्क नहीं दर्द हुआ करता है
अच्छी तरह वाकिफ हूँ कि लड़खड़ाने से सिर्फ हादसा हुआ करता है।
दिल की गहराईयों से बंद आँखों में झांककर कुछ टटोलो तो सही
मन की आँखों का रिश्ता अक्सर दर्दे-दिल से जुड़ा हुआ करता है।
सिर्फ हवादिशें नहीं थी वह खुद खुदा का ऐतबार भी था मुझपर
जज्बा-ए-जुनूं-ए-कायनात उसका मुझसे ही तो उजागर हुआ करता है ।
जल जंगल जमीन की दौलत से लाख तिजोरी भरते रहो उनकी लेकिन
कोयला दबकर कभी कोहिनूर तो दहककर कभी अंगार हुआ करता है।
जख्मे-जिस्म भूलकर जमाने भर का जहर रोज तुम पीते रहो 'अमर'
हयाते-दहर को बचाकर ही कोई युगों-युगों से नीलकंठ हुआ करता है ।
34.
तो कोई बात बने
--------------------
जम्हूरियत के उजाले फिर से दिखालाओ तो कोई बात बने
जहर बुझी मीठी छूरी की चिता सजाओ तो कोई बात बने।
फतह की धूल उड़ाते रहे लहराती शमशीर के बल लोग
सहमे हुए दिलों को जीत के दिखाओ तो कोई बात बने।
फ़रेबी-कंधों के सहारे चलती है नफ़रतों की सियासत
तुम आदमी बनकर भी कभी आओ तो कोई बात बने।
चक्की की तरह पिसती खुद को घिसती रही जो ता-उम्र
हँसती हुई माँ की तरह अश्क छिपाओ तो कोई बात बने।
मुर्दा तवारीख अटी पड़ी है कत्लो-गारद के फ़सानों से 'अमर'
अबके सावन मुहब्बतों के गुल भी खिलाओ तो कोई बात बने।
तो कोई बात बने
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जम्हूरियत के उजाले फिर से दिखालाओ तो कोई बात बने
जहर बुझी मीठी छूरी की चिता सजाओ तो कोई बात बने।
फतह की धूल उड़ाते रहे लहराती शमशीर के बल लोग
सहमे हुए दिलों को जीत के दिखाओ तो कोई बात बने।
फ़रेबी-कंधों के सहारे चलती है नफ़रतों की सियासत
तुम आदमी बनकर भी कभी आओ तो कोई बात बने।
चक्की की तरह पिसती खुद को घिसती रही जो ता-उम्र
हँसती हुई माँ की तरह अश्क छिपाओ तो कोई बात बने।
मुर्दा तवारीख अटी पड़ी है कत्लो-गारद के फ़सानों से 'अमर'
अबके सावन मुहब्बतों के गुल भी खिलाओ तो कोई बात बने।
35.
कातिल तेरी अदाएँ
......................
कातिल तेरी अदाएँ शातिर तिरा मुस्कुराना
पहलू में छिपा खंजर दिल से दिल मिलाना।
मिजाज कुछ शहर का कुछ असर तुम्हारा
खुशी मिली मुझे भी के मौजूं मेरा फसाना।
फितरत तेरी समझकर सभी हँस रहे अब
मिलकर तेरा हमीं से यूँ हाले-दिल सुनाना।
सबको खबर हुई मुश्किल में आज तुम भी
फिर करीब आने का खोजते नया बहाना।
खुदा की ईनायत 'अमर' ईमान तेरा गवाह
जख्म भरे तो नहीं पर गैरों को मत रुलाना।
कातिल तेरी अदाएँ
......................
कातिल तेरी अदाएँ शातिर तिरा मुस्कुराना
पहलू में छिपा खंजर दिल से दिल मिलाना।
मिजाज कुछ शहर का कुछ असर तुम्हारा
खुशी मिली मुझे भी के मौजूं मेरा फसाना।
फितरत तेरी समझकर सभी हँस रहे अब
मिलकर तेरा हमीं से यूँ हाले-दिल सुनाना।
सबको खबर हुई मुश्किल में आज तुम भी
फिर करीब आने का खोजते नया बहाना।
खुदा की ईनायत 'अमर' ईमान तेरा गवाह
जख्म भरे तो नहीं पर गैरों को मत रुलाना।
36.
इक ठहरी हुई सर्द शाम
................................
इस गुलाबी शहर की थी वो इक ठहरी हुई सर्द शाम
दिल की पाती से जुड़ा था शबनम सा तेरा नाम।
थम सा गया था वक्त यारो ये रुत भी मुस्कुराने लगी
खनककर चूडियाँ दे रहीं थीं प्यार का पैगाम।
जिन्दगी ले चुकी थी करवटें पर पतंगा मिटता ही रहा
इश्क में ता-उम्र शम्मा धू-धू जलती रही गुमनाम।
कैसे निकाले बूँद मकरंद की बिखरे हुए परागों से कोई
मोहब्बत फसाना बन धुआँ होती रही सरे आम।
मिटा न सकी गर्द गुजरे जमाने की 'अमर' बहकती यादें
लटकते गजरों को महकती सांसों का ये सलाम।
इक ठहरी हुई सर्द शाम
................................
इस गुलाबी शहर की थी वो इक ठहरी हुई सर्द शाम
दिल की पाती से जुड़ा था शबनम सा तेरा नाम।
थम सा गया था वक्त यारो ये रुत भी मुस्कुराने लगी
खनककर चूडियाँ दे रहीं थीं प्यार का पैगाम।
जिन्दगी ले चुकी थी करवटें पर पतंगा मिटता ही रहा
इश्क में ता-उम्र शम्मा धू-धू जलती रही गुमनाम।
कैसे निकाले बूँद मकरंद की बिखरे हुए परागों से कोई
मोहब्बत फसाना बन धुआँ होती रही सरे आम।
मिटा न सकी गर्द गुजरे जमाने की 'अमर' बहकती यादें
लटकते गजरों को महकती सांसों का ये सलाम।
37.
जिन्दगी के क्या कहिए
...............................
टुकड़ों में बँटती है रोज लुटती सी इस जिन्दगी के क्या कहिए
सच को सौदा बना रहे हैं लोग जहाँ ऐसे डेरों के क्या कहिए।
शिद्दत से तो पूछे कोई उनसे महकती हुई इस शोहरत का राज
मुंसिफ ने सुनाया हुक्म जब फिर उसकी रंगत के क्या कहिए।
खुदा से कमतर क्यों समझे कोई जों पास हो दरिन्दों की फौज
मासूमों पे कहर बरपाते हुऐ शैतानों की नीयत के क्या कहिए।
फरिश्ता कहते हो तुम उसको जो करता इन्सानियत का खून
सजदा करे चौखट पे हाकिम तो हालाते-मुल्क के क्या कहिए।
बिरहमन को गरियाने के रस्मी रिवाज से क्या होगा 'अमर'
धर्म की धज्जियाँ जो उड़ाते हैं उन हुक्मरानों से क्या कहिए।
जिन्दगी के क्या कहिए
...............................
टुकड़ों में बँटती है रोज लुटती सी इस जिन्दगी के क्या कहिए
सच को सौदा बना रहे हैं लोग जहाँ ऐसे डेरों के क्या कहिए।
शिद्दत से तो पूछे कोई उनसे महकती हुई इस शोहरत का राज
मुंसिफ ने सुनाया हुक्म जब फिर उसकी रंगत के क्या कहिए।
खुदा से कमतर क्यों समझे कोई जों पास हो दरिन्दों की फौज
मासूमों पे कहर बरपाते हुऐ शैतानों की नीयत के क्या कहिए।
फरिश्ता कहते हो तुम उसको जो करता इन्सानियत का खून
सजदा करे चौखट पे हाकिम तो हालाते-मुल्क के क्या कहिए।
बिरहमन को गरियाने के रस्मी रिवाज से क्या होगा 'अमर'
धर्म की धज्जियाँ जो उड़ाते हैं उन हुक्मरानों से क्या कहिए।
38.
धरम का धंधा है फिर ऊफान पर
..........................................
धरम का धंधा है फिर ऊफान पर
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धरम
का धंधा है फिर ऊफान पर खूब बिकते देखा है
शुक्रिया भक्तो राक्षसों को भी भगवान बनते देखा है।
वक्त का फैसला भला कौन टाल सका आज तलक
पुजारियों की औलाद को भी दरबान बनते देखा है।
प्यार का गुलिस्ताँ भी अब मैदाने-जंग बनने लगा
फूलों को अपने आँगन में धू-धूकर जलते देखा है।
इंकलाब की कश्ती पर चढ़के जो हुक्मरान बन गए
सरे आम उनको जातियों का सरदार बनते देखा है।
अँधेरों को चीरकर जो जहां रौशन करते रहे 'अमर'
सच के लिए उनको मीरा वो सुकरात बनते देखा है।
शुक्रिया भक्तो राक्षसों को भी भगवान बनते देखा है।
वक्त का फैसला भला कौन टाल सका आज तलक
पुजारियों की औलाद को भी दरबान बनते देखा है।
प्यार का गुलिस्ताँ भी अब मैदाने-जंग बनने लगा
फूलों को अपने आँगन में धू-धूकर जलते देखा है।
इंकलाब की कश्ती पर चढ़के जो हुक्मरान बन गए
सरे आम उनको जातियों का सरदार बनते देखा है।
अँधेरों को चीरकर जो जहां रौशन करते रहे 'अमर'
सच के लिए उनको मीरा वो सुकरात बनते देखा है।
39.
सितारे
खूब मुस्कुराने लगे
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थका
सा आफताब देख सितारे खूब मुस्कुराने लगे।
अँधेरी रात की वो तूफानी हवा साये भी डराने लगे।
अँधेरी रात की वो तूफानी हवा साये भी डराने लगे।
दिन
के उजाले में जो रोज छिपते रहे ऊल्लू की तरह
अँधेरे में जुगनू बनकर वो हर तरफ टिमटिमाने लगे।
अँधेरे में जुगनू बनकर वो हर तरफ टिमटिमाने लगे।
कोहरे
ने ढक लिया जैसे भोर की चढ़ रही ललाई को
विवश बेचैन हो परिन्दे भी फिर कोहराम मचाने लगे।
विवश बेचैन हो परिन्दे भी फिर कोहराम मचाने लगे।
किसी
ने देखा ही नहीं मजबूर उन आँखों की कसक
बावले हो गए लोग जो जीत का परचम लहराने लगे।
बावले हो गए लोग जो जीत का परचम लहराने लगे।
बाज
आए नहीं आज भी 'अमर' फतवा
ही सुनाते रहे
पर संभलना जरा तुम वो प्यार फिर अब जताने लगे।
पर संभलना जरा तुम वो प्यार फिर अब जताने लगे।
40.
फ़िक्र
साझी विरासत की
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फिक्र
साझी विरासत की थी सब रंजो-गम हम भुलाते रहे
दी गैरों को हँसी बेफिक्र और अपनों को हम रूलाते रहे।
दी गैरों को हँसी बेफिक्र और अपनों को हम रूलाते रहे।
वो
दिल के करीब था न था अब क्या बताऐँ राज सबको
पता ना था के खुद के हाथों चरागे-बज्म हम बुझाते रहे।
पता ना था के खुद के हाथों चरागे-बज्म हम बुझाते रहे।
बार-बार
छलकता तो रहा सब्र का पैमाना ऐ नूरे-हयात
मगर बेचैन दिल से हर हाल आपको ही हम बुलाते रहे।
मगर बेचैन दिल से हर हाल आपको ही हम बुलाते रहे।
आसां
नहीं था जज्ब करना सहमी हुई सी इक मजबूर हँसी
सबको है पता अस्मत खुद की ही रोज-रोज हम लुटाते रहे।
सबको है पता अस्मत खुद की ही रोज-रोज हम लुटाते रहे।
मुर्दों
को सुकूँ वहाँ भी न था जमीं-आसमां मिल रहे थे जहाँ
बेखौफ़ "अमर" खूँ के छींटे तेरे निज़ाम में यूँ हम उड़ाते रहे।
बेखौफ़ "अमर" खूँ के छींटे तेरे निज़ाम में यूँ हम उड़ाते रहे।
41.
शोर ही सफलता का
पैमाना बन गया
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शोर ही सफलता का
पैमाना बन गया
दहकता हुआ अंगार भी धुआँ बन गया।
दहकता हुआ अंगार भी धुआँ बन गया।
वक्त के निशाने पे बेखौफ चल रहा था
कल था जो शूरमा अब तारीख बन गया।
कल था जो शूरमा अब तारीख बन गया।
हैरतअंगेज थी रंगते-काफिले-शानो-शौकत
बहकती हवा में जिस्म का मकां बना गया।
बहकती हवा में जिस्म का मकां बना गया।
कौन कह रहा है के हो गई मुकम्मल फतह
दुबककर खड़ा था जो अब ढाल बन गया।
दुबककर खड़ा था जो अब ढाल बन गया।
जमीं से आसमां तलक शोर जश्न का ऐसा
आँधी-गर्द-गुबार ही 'अमर' अश्क़ बन गया।
आँधी-गर्द-गुबार ही 'अमर' अश्क़ बन गया।
42.
निराला है ये जिंदगी का सफर
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निराला है ये
जिन्दगी का सफर
नहीं तन्हा रही कभी इसकी डगर।
नहीं तन्हा रही कभी इसकी डगर।
हुई बातें बहुत ही हालाते-मुल्क की
भक्ति-वफादारी बन गई अब जहर।
भक्ति-वफादारी बन गई अब जहर।
चिल्ल-पौं मची आज चारों तरफ है
शोलों पर चलो तो कुछ होवे असर।
शोलों पर चलो तो कुछ होवे असर।
मुकद्दस जमीं जब वतन की पुकारे
जवानी को कैसे कोई रक्खे बेखबर।
जवानी को कैसे कोई रक्खे बेखबर।
लहराई थी बेशक उम्मीदों की पौध भी
पर बातों से बदली ना तकदीर ‘अमर’।
पर बातों से बदली ना तकदीर ‘अमर’।
43.
तुम्हारी ही धड़कनों के साथ धड़कती है
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तुम्हारी ही
धड़कनों के साथ धड़कती पूरी कायनात
तुम्हीं हो जो महका करती खुदाई में खुशबू सी सारी रात।
तुम्हीं हो जो महका करती खुदाई में खुशबू सी सारी रात।
हवादिसें भी हारकर फ़ना राहे-जिंदगी से हुई
हसीन उल्फते-तखय्युल में हमने गुजारी सारी रात।
हसीन उल्फते-तखय्युल में हमने गुजारी सारी रात।
मखमली लिबास में उतरी वो सुर्ख-सफेदी सी हया
पलकों में छिपी चश्मे-तसव्वुर कटी आँखों में सारी रात।
पलकों में छिपी चश्मे-तसव्वुर कटी आँखों में सारी रात।
रिश्ते मासूम-दिलों के जुड़ते रहे जिस चमन में
कभी
हमसफर-महबूब कहाँ है वहाँ अब फैली सूनी सारी रात।
हमसफर-महबूब कहाँ है वहाँ अब फैली सूनी सारी रात।
उम्र भर तकते ही रहे “अमर” पाकीज़ा
कदमों के निशाँ
बेखुदी में बुदबुदाते गए रिन्दानों की तरह सारी-सारी रात।
बेखुदी में बुदबुदाते गए रिन्दानों की तरह सारी-सारी रात।
44.
इठलाती नदी में
भी छटपटाहट देखी हमने
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इठलाती नदी में
भी छटपटाहट देखी हमने
बदलते हुए गाँव की शाम में अकुलाहट देखी हमने।
बदलते हुए गाँव की शाम में अकुलाहट देखी हमने।
चाँद छूने के अरमान पाल रक्खे थे लेकिन
युवा दिलों में बेरोजगारी की छटपटाहट देखी हमने।
युवा दिलों में बेरोजगारी की छटपटाहट देखी हमने।
कल थे तीसमार आज पिट गए सरे-आम
चुप्पी की हँसी में भी खिलखिलाहट देखी हमने।
चुप्पी की हँसी में भी खिलखिलाहट देखी हमने।
बर्फ का पहाड़ खड़ा था रिश्तों के दरमियाँ
साँसें टकराई तो धड़कनों में गरमाहट देखी हमने।
साँसें टकराई तो धड़कनों में गरमाहट देखी हमने।
लोग वही पुराने लेकिन रवायत नई "अमर"
पुरवाई हवा में अब फिर से सरसराहट देखी हमने।
पुरवाई हवा में अब फिर से सरसराहट देखी हमने।
45.
दिखा नहीं गाँव
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बहुत देखा बहुत
खोजा पर दिखा नहीं गाँव
मकाँ वो दरख्त बहुत पे दिखती नहीं छाँव।
मकाँ वो दरख्त बहुत पे दिखती नहीं छाँव।
पगडंडियाँ खो गई कहीं रास्तों की भीड़ में
दिन-रात हम चले लेकिन मिली नहीं ठाँव।
दिन-रात हम चले लेकिन मिली नहीं ठाँव।
थी चाहत चाँद छूने की और मन बेलगाम
बहकती फज़ाओं में रिन्दानों के पड़े पाँव।
बहकती फज़ाओं में रिन्दानों के पड़े पाँव।
बाजीगरी के जलवे उन हवाओं में तैरते थे
चुपचाप खेलता था हर शख्स कोई दाँव।
चुपचाप खेलता था हर शख्स कोई दाँव।
सब चीखने लगे हँसते हुए अचानक "अमर"
रोक-टोक नहीं किसी अजूबे सफर पे गाँव।
रोक-टोक नहीं किसी अजूबे सफर पे गाँव।
46.
जाँ नहीं गोस्त
ही दिखलाई दिया मुझको
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जाँ नहीं गोस्त
ही दिखलाई दिया मुझको
सबने यूँ तो दीन की तरह जिया मुझको।
सबने यूँ तो दीन की तरह जिया मुझको।
बेजुबान मैं भी नहीं पर उस हवस का क्या
अजाने कई सायों ने दबोच लिया मुझको।
अजाने कई सायों ने दबोच लिया मुझको।
मिमियाती हुई आवाज जो निकली थी मेरी
जयघोष के कफन में लिपटा दिया मुझको।
जयघोष के कफन में लिपटा दिया मुझको।
भगवान मजहबी इन्सान से जो पड़ा पाला
तेरे नाम पर ही सबने बलि किया मुझको।
तेरे नाम पर ही सबने बलि किया मुझको।
गर्दनें सभी कटतीं रहीं सामने ही "अमर"
फब्बारा-ए-खूं ने संगदिल किया मुझको।
फब्बारा-ए-खूं ने संगदिल किया मुझको।
47.
जुबां चुप
निगाहें बोलती हैं
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जुबां चुप
निगाहें बोलती हैं देखकर कुछ सुना कीजिए
खामोशियाँ ही ताकत बन गई है दिल से दुआ दीजिए।
खामोशियाँ ही ताकत बन गई है दिल से दुआ दीजिए।
वीरान से ग़ोशों को गज़रों से महकाया है आपने ही
गुलिस्ताँ में उमंगों के फूल अब फिर खिला दीजिए।
गुलिस्ताँ में उमंगों के फूल अब फिर खिला दीजिए।
श़िद्दत से जोड़ा शीशा-ए-दिल महताब़े-पूनम ने
बार-बार
दौड़ने लगी है ज़िंदगी फिर से खुशियों की सदा दीजिए।
दौड़ने लगी है ज़िंदगी फिर से खुशियों की सदा दीजिए।
मुहब्बतों में हसरतों की ताबीर हम खुद बन गए हैं
सुकूँ रुख़सत हो रहा है मासूम पे दिल लुटा दीजिए।
सुकूँ रुख़सत हो रहा है मासूम पे दिल लुटा दीजिए।
भाग ही जाती हैं आखिर हवादिसें जिंदगी से “अमर”
ता-उम्र लड़ने की मशाल एक बार बस जला दीजिए।
ता-उम्र लड़ने की मशाल एक बार बस जला दीजिए।
48.
मौसमे-गुल को भी ऊल्फ़त सिखलाई हमने
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मौसमे-गुल को भी
ऊल्फत सिखलाई हमने
सुर्ख-रु आरिज़ों की आरज़ू जतलाई हमने।
सुर्ख-रु आरिज़ों की आरज़ू जतलाई हमने।
बेरूह गिला करना अब ज़ुल्मते-जहराव की
बलानोश बन गया अफ़सुर्दगी बचाई हमने।
बलानोश बन गया अफ़सुर्दगी बचाई हमने।
खूँ-ए-सवाल खंद-ए-दिल याद आते ही रहे
ऐज़ाजे-मसीहा तलक बात पहुँचाई हमने।
ऐज़ाजे-मसीहा तलक बात पहुँचाई हमने।
तीन-तेरह के हिसाब में उलझी रही जिंदगी
सदा-ए-मुफ़सिली तुमसे ना बतलाई हमने।
सदा-ए-मुफ़सिली तुमसे ना बतलाई हमने।
हर बार आता नहीं दहर में अज़ल चुपचाप
"अमर"
अँधेरों में शम्मा चलकर आई रंगत दिखलाई हमने।
अँधेरों में शम्मा चलकर आई रंगत दिखलाई हमने।
49.
नज़रें
मुस्कुराकर चुराने लगे
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तन्हाईयों में
आपसे नजरें मुस्कुराकर चुराने लगे लोग
रुसवाइयों का जश्न सरे-ब़ज्म बेफिक्र मनाने लगे लोग।
रुसवाइयों का जश्न सरे-ब़ज्म बेफिक्र मनाने लगे लोग।
अब तो ले आ फिर पैमाने-वफा ता-ब-लब ऐ नूरे-हयात
अहदे-वफा यूँ सहरो-शाम सज़दा कर जताने लगे लोग।
अहदे-वफा यूँ सहरो-शाम सज़दा कर जताने लगे लोग।
चन्द लमहात की गुफ्त़गू से मचल गया जो दिल मिरा
अफ़सोस गेसूओं को अदा से फिर लहराने लगे लोग।
अफ़सोस गेसूओं को अदा से फिर लहराने लगे लोग।
बावला है दिल गहराईयों में डूबकर देखो ऐ तबस्सुम
इश्क-इंतहा तेरे रूह की परछाईं है बताने लगे लोग।
इश्क-इंतहा तेरे रूह की परछाईं है बताने लगे लोग।
किसी फरियाद का हक़ ड्यौढ़ी पर नहीं हुजूर
उल्फ़ते-आशिकी है "अमर" खुद को ही लुटाने लगे लोग
उल्फ़ते-आशिकी है "अमर" खुद को ही लुटाने लगे लोग
50.
मत कर गिला जफा
का
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मत कर गिला ज़फा
का बदला फिर दौरे-जमाना
कल की बात बिसरें हम अब गाएँ नया तराना।
कल की बात बिसरें हम अब गाएँ नया तराना।
पल-पल रंग बदलते किसी गिरगिट की फिक्र मत कर
सयाने संग मासूम भी यहाँ मन में हरदम ये बसाना।
सयाने संग मासूम भी यहाँ मन में हरदम ये बसाना।
कुदरत की बात करते हर रोज दरख्तों को काटकर
जंगलात उजाड़ उनको है सींची झाड़ियां दिखाना।
जंगलात उजाड़ उनको है सींची झाड़ियां दिखाना।
कुछ तो पता है हमको भी फितरते-हुकूमत की रंगत
कल शागिर्द रहे जो हमारे आज तुमसे वफा जताना।
कल शागिर्द रहे जो हमारे आज तुमसे वफा जताना।
वाकिफ हैं आप भी
तो मेरी तबीयत से मेरे हाकिम
कोहे-गम में 'अमर' अक्सर पासे-हयात ढूंढ लाना।
कोहे-गम में 'अमर' अक्सर पासे-हयात ढूंढ लाना।
51.
छलांग लगाकर तो देखो
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उफनती नदी मटमैली बाढ़ है धार में छलांग लगाकर तो
देखो
तासीर जवानी की बंद हैं आँखेँ अँधेरी सुरंग जाकर तो देखो।
तासीर जवानी की बंद हैं आँखेँ अँधेरी सुरंग जाकर तो देखो।
ज़िन्दगी
की जंग जीतने का ज़ज्बा अब रूमानी कहानी नहीं
आभासी दुनिया में भी खुशी है अपनों को ढूँढकर तो देखो।
आभासी दुनिया में भी खुशी है अपनों को ढूँढकर तो देखो।
नौजवानों
के कंधों पर है हालाते-मुल्क बदलने का ज़िम्मा भी
बहकाया जो करते चेहरे उन्हें गौर से तुम पहचानकर तो देखो।
बहकाया जो करते चेहरे उन्हें गौर से तुम पहचानकर तो देखो।
खामोश
निगाहें भी बोली शराबी आँखों में तैरता रूहानी सुकूँ
बदली फिजा है उम्मीदों को तुमभी फिर से सजाकर तो देखो।
बदली फिजा है उम्मीदों को तुमभी फिर से सजाकर तो देखो।
जलजला
आ रहा मची चीखो-पुकार पर थिरकते मस्ती में लोग
बेहयाई से झूमे जमाना मगर "अमर" उनको जगाकर तो देखो।
बेहयाई से झूमे जमाना मगर "अमर" उनको जगाकर तो देखो।
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