भटकते हुए खयालात हैं कि चाहतों की बरसात
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अमर पंकज
( डॉ अमर नाथ झा )
मोबाईल-- 9871603621
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अमर पंकज
( डॉ अमर नाथ झा )
मोबाईल-- 9871603621
भटकते हुए खयालात हैं कि चाहतों की बरसात
अधमुंदी पलकों की हुई अलसाई भोर से मुलाकात।
अधमुंदी पलकों की हुई अलसाई भोर से मुलाकात।
परछाई ढूँढती रही वही बिछड़ा हुआ ठिकाना
खुद को ही बाँटता रहा बनके बेबसी की सौगात।
खुद को ही बाँटता रहा बनके बेबसी की सौगात।
मुझसे सवाल करती रही मेरी ही सर्द साँसें
भटकती हुई रूह चुन रही बिखरे हुए लम्हात।
भटकती हुई रूह चुन रही बिखरे हुए लम्हात।
हँसते रहे अश्क़ सुस्त धड़कनों से खेलकर
सहरा-ए-जिस्म देख भड़के ठहरे हुए ज़ज्ब़ात।
सहरा-ए-जिस्म देख भड़के ठहरे हुए ज़ज्ब़ात।
चलकर आया समंदर दरिया से मिलने गाँव
खो गया चाँद 'अमर' ढूँढता आफताब सारी रात।
खो गया चाँद 'अमर' ढूँढता आफताब सारी रात।
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