शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

उम्र भर साथ चलते रहे लेकिन ढूँढ नहीं पाया उनको
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उम्र भर साथ चलते रहे लेकिन ढूँढ नहीं पाया उनको
बसते तो रहे तसव्वुर में मगर देख नहीं पाया उनको।
उड़ाते रहे सुकून से रोज वो अरमानों की राख़ खुद ही
फड़कते लबों ने बिखेरी खुशबू देख नहीं पाया उनको।
सहमे हुए चमन के दिल में बसा चिनगरियों का अंधेरा
चुप सिसकते रहे परिन्दे कोई देख नहीं पाया उनको।
हाँफती हवाओं में बेजान दरख़्त खड़े बेज़ार रो रहे थे
कलियों-संग रूत थी उदास देख नहीं पाया उनको।
चैन की नींद नसीब किसको शोर-ए-आतिश में ‘अमर’
चराग़े-लौ में अटक गई साँसें देख नहीं पाया उनको।

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