"बदल रहा सब कुछ तो फ़िर, बदल जाने दो
मुझे मगर बेहोशी की, दवा खाने दो।"
मुझे मगर बेहोशी की, दवा खाने दो।"
मात्रिक चंद में 23 मात्राओं का यह मतला यति और गति के नियम का पालन करता है। परंतु इसकी बह्र क्या है? किसी को जानकारी हो तो कृपया बताने का कष्ट करें? मुझे मतले का यह स्वतःस्फूर्त शेर बहुत पसंद आ रहा है। अगर इसकी बह्र कोई बता सके तो आसानी होगी, अन्यथा मुझे इसे बे-बह्र ही कहना पड़ेगा क्योंकि इसके आंतरिक लय को मैं नहीं तोड़ना चाहता।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें