कैद करने चला है
------------------------
अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
कैद करने चला है हवाओं को वो
अनसुनी कर रहा सब सद़ाओं को वो।
अनसुनी कर रहा सब सद़ाओं को वो।
हुक्म है मौज़ भी ना मचलकर बहे
हर समय तौलता है वफ़ाओं को वो।
हर समय तौलता है वफ़ाओं को वो।
चाहती हो बरसना, इज़ाज़त तो लो
कह रहा है हमेशा घटाओं को वो।
कह रहा है हमेशा घटाओं को वो।
हर जगह गूँजती है उसी की जुबाँ
बाँधना चाहता है दिशाओं को वो।
बाँधना चाहता है दिशाओं को वो।
अब चलीं आँधियाँ तो लगा चौंकने
दोष देने लगा फिर फज़ाओं को वो
दोष देने लगा फिर फज़ाओं को वो
जब भड़कने लगी जंग की आग तो
कोसने अब लगा शूरमाओं को वो।
कोसने अब लगा शूरमाओं को वो।
लुट रही आबरू बेटियों की जहाँ
मुँह दिखाए 'अमर' कैसे माँओं को वो।
मुँह दिखाए 'अमर' कैसे माँओं को वो।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें