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इस रोग का है इलाज़ क्या
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
इस रोग का है इलाज़ क्या मुझे इश्क है जो रक़ीब से
कमबख़्त यह मिटता नहीं कोई क्या कहेगा हब़ीब से।
कमबख़्त यह मिटता नहीं कोई क्या कहेगा हब़ीब से।
कहते रहे सब उम्र भर बदले नहीं तुम ही कभी
दहलीज़ पर अब ज़िंदगी वह देखती है क़रीब से।
दहलीज़ पर अब ज़िंदगी वह देखती है क़रीब से।
नफ़रत जहाँ तक फैलती घुटता वहाँ तक आदमी
खुद को लुटा अब प्यार पर मिलता मगर जो नसीब से।
खुद को लुटा अब प्यार पर मिलता मगर जो नसीब से।
दिल चीर के दिखला रहे हम पास में महबूब है
पर सुर्ख खूँ बहता रहा बचते रहे वो गरीब से।
पर सुर्ख खूँ बहता रहा बचते रहे वो गरीब से।
सब थक चुके पर वो नहीं उनकी रही मुझ पर नज़र
वह चाहते हैं तोड़ना सबको इसी तरक़ीब से।
वह चाहते हैं तोड़ना सबको इसी तरक़ीब से।
बहने लगी बदली हवा चुभने लगी कुछ आँख को
हँसने लगी रुत भी 'अमर' डरने लगे वो सलीब से।
हँसने लगी रुत भी 'अमर' डरने लगे वो सलीब से।
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