(अपने ग़ज़ल-गुरु श्रद्धेय गुरुदेव शरद तैलंग साहेब की ज़मीन पर कही /लिखी अपनी यह ग़ज़ल मैं उन्हें ही समर्पित करता हूँ। प्रणाम गुरुवर। आपका आशीष बना रहे।)
ग़ज़लः
अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
देहली यूनिवर्सिटी
मोबाइल-9871603621
अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
देहली यूनिवर्सिटी
मोबाइल-9871603621
अब बगावत का शरर पैदा कर
जी के या मर के मगर पैदा कर
जी के या मर के मगर पैदा कर
लहर तो क्रांति की उठनी है अब
सूरमाओं सा जिगर पैदा कर
सूरमाओं सा जिगर पैदा कर
गुम अँधेरों में न हो जाएँ हम
आस की कोई सहर पैदा कर
आस की कोई सहर पैदा कर
बंद आँखों से भी दिख जाऊँगा
प्यार की कोई नज़र पैदा कर
प्यार की कोई नज़र पैदा कर
इश्क़ को मुश्क ही बनना है पर
आशिकी का तो हुनर पैदा कर
आशिकी का तो हुनर पैदा कर
बात सारी तेरी मानें हम भी
ऐसे जज़्बात 'अमर' पैदा कर
ऐसे जज़्बात 'अमर' पैदा कर
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