रविवार, 19 मई 2019

देशहित में अब जवानी भी मचलनी चाहिए (ग़ज़ल)

ग़ज़लः
अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621

2122 2122 2122 212

देश हित में अब जवानी भी मचलनी चाहिए
क्रांति की आवाज़ दिल से अब निकलनी चाहिए

भेद की दीवार करती मुल्क़ को बर्बाद है
सबको मिलकर मुल्क़ की सूरत बदलनी चाहिए

आग बरसाने लगा पगला गया है सूर्य भी
सब हुए बेहाल अब तो शाम ढलनी चाहिए

चाँद से गोरे बदन ने कर दिया पागल मुझे
रूह पिघली अब नज़र रुख़ से फिसलनी चाहिए

बेड़ियाँ हैं पाँव में ख़ामोश रहती है ज़ुबां
ख़ामुशी में भी 'अमर' इक आग जलनी चाहिए

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