दिया था जिसे हमने हर पल सहारा
जड़ा मुँह पे थप्पड़ उसी ने करारा
बहुत शोर बदलाव का मुल्क़ में है
सड़क पर कटोरा लिये है बिचारा
मिलेगा नहीं कुछ बहाने से आँसू
मिटेगा नहीं दर्द ऐसे तुम्हारा
बहारें फ़िजा की लगीं रूठने हैं
धुएँ में सिमटने लगा है नज़ारा
बिरहमन चुकाता है सच की ही कीमत
बिरहमन हैं ईमान सच है हमारा
लुटा क्या तुम्हारा भुलाओ 'अमर' तुम
बसाना है उजड़ा चमन फिर दुबारा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें