रविवार, 3 सितंबर 2017

धरम का धंधा है फिर ऊफान पर

धरम का धंधा है फिर ऊफान पर
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अमर पंकज
(डा अमर नाथ झा)
धरम का धंधा है फिर ऊफान पर खूब बिकते देखा है
शुक्रिया भक्तो राक्षसों को भी भगवान बनते देखा है।
वक्त का फैसला भला कौन टाल सका आज तलक
पुजारियों की औलाद को भी दरबान बनते देखा है।
प्यार की बगिया भी क्यों अब मैदाने-जंग बनने लगी
फूलों को अपने आँगन में ही धू-धूकर जलते देखा है।
इंकलाब की कश्ती पर चढ़के जो हुक्मरान बन गए
सरे आम उनको जातियों का सरदार बनते देखा है।
शोर ही सफलता का आज है पैमाना बन गया मगर
अंगार बन दहकते थे जो उनको धुआँ बनते देखा है।
अँधेरों को चीरकर जो जहां रौशन करते रहे 'अमर'
सच के लिए उनको मीरा वो सुकरात बनते देखा है।

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