रविवार, 29 अप्रैल 2018

उठे नैन फ़िर से
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय)
मोबाइल - 9871603621
उठे नैन फ़िर से मग़र आज बिन खिले
जहाँ तक नज़र जाए बेचैन सब मिले।
अँधेरों से लड़ते अकेले रहे हम
सभी शूरमाओं के जो लब़ थे सिले।
अँधेरों से कह दो सिमट जाए ख़ुद में
चराग़ों की लौ से कभी ना करे गिले।
सुबह फिर हुई औ परिन्दे भी चहके
चली है हवा जो नई तो वो भी हिले।
बनाया है उसने सलीके से उल्लू
करम सबके अपने मिलेंगे कभी सिले।
हँसी में 'अमर' तुम ग़ज़ल कह रहे हो
समेटे हुए ग़म सभी कब सुकूँ मिले।

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