देखती ही रही
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
देखती ही रही राह तेरी सनम
तुम मेरे हो हकीकत यही या भरम।
मैं तुम्हारे लिए ही तो सजती रही
सिर्फ तेरे लिए हो मेरा हर जनम।
सूखने सब शजर के लगे शाख हैं
पर बचे फूल कुछ जान उनके मरम।
ढूँढती आज मैं हर दिशा यार को
फल मिलेगा सदा जैसे होंगे करम।
सोचना तुम नहीं भींख हूँ माँगती
जिद यही प्यार में हम करें क्यों शरम।
सिर्फ है इश्क की बात ये अब नहीं
आन में मत 'अमर' हो कभी भी नरम।
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