वक्त का रूप ज्यों-ज्यों बदलता रहा
---------------------------------------------
अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
---------------------------------------------
अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
वक़्त का रूप ज्यों-ज्यों बदलता रहा
ज़ुल्म का भी नया खुलता रस्ता रहा ।
ज़ुल्म का भी नया खुलता रस्ता रहा ।
आपदाएँ अभी हैं खड़ीं सामने
बंद आँखें तू फिर भी तो करता रहा।
बंद आँखें तू फिर भी तो करता रहा।
साज़िशें चल रही थीं पुरानी सभी
साज़िशों की इब़ारत़ भी पढता रहा।
साज़िशों की इब़ारत़ भी पढता रहा।
वो भी शामिल हुए दुश्मनों में अभी
यार जिनको तू अपना समझता रहा।
यार जिनको तू अपना समझता रहा।
इस इमारत में अब धूप आती नहीं
रोशनी देखने को तड़पता रहा।
रोशनी देखने को तड़पता रहा।
रात में देखकर आँसुओं को 'अमर'
हर धड़ी करवटें ही बदलता रहा।
हर धड़ी करवटें ही बदलता रहा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें