रविवार, 13 मई 2018

सभी कहते रहे
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
सभी कहते रहे उसकी हक़ीक़त का फ़साना अब
कहाँ तक वो गिरोगा देखता है ये ज़माना अब।
फ़कत वादों के झ़ांसे में सभी खोए रहे सब दिन
मग़र फ़िर वक्त भी गाने लगा बदला तराना अब।
कली को चूसकर जो गुनगुनाता बेशरम भौंरा
पड़ी जब हर तरफ से मार तो ढूँढे बहाना अब।
छुपाने की करे कोशिश वही सब दिन गुनाहों को
नहीं उसका शरीफ़ों के शहर में है ठिकाना अब।
हँसी है हो गई गायब दिखा मायूस अब हाक़िम
घिरा जब हर दिशा से वो हँसा दुश्मन पुराना अब।
मुकर्रर वक्त हर अंजाम का होता सुनो तुम भी
'अमर' है हो रहा रुस्वा जो बनता था सयाना अब।

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