सोमवार, 20 मई 2019

दुश्मनी अपनी जगह (ग़ज़ल)

ग़ज़ल:
अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
दुश्मनी अपनी जगह है दोस्ती अपनी जगह
कुछ तो हो तक़रार में भी प्यार की अपनी जगह
दूर तुमसे हो गया मैं था लिखा किस्मत में पर
अब तलक महफ़ूज तेरी याद की अपनी जगह
हाथ लंबे हैं बहुत क़ानून के तो क्या हुआ
है अदालत में अभी भी झूठ की अपनी जगह
जानते हैं सब मेरा सच पर ये सिस्टम देखिये
न्याय के मंदिर में भी मिलती नहीं अपनी जगह
यह सियासी खेल है चलता रहेगा ऐ 'अमर'
हाल हो बदहाल फिर भी जश्न की अपनी जगह

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