ग़ज़ल:
अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
देहली यूनिवर्सिटी
मोबाइल-9871603621
(डाॅ अमर नाथ झा)
देहली यूनिवर्सिटी
मोबाइल-9871603621
अब मेरे महबूब मुझको दोस्त कहने लग गये
इसलिए शायद वो मुझसे दूर रहने लग गये
इसलिए शायद वो मुझसे दूर रहने लग गये
कुछ तो होगा तितलियों के नाचने का भी सबब
सोचकर हम प्रेम की गंगा में बहने लग गये
सोचकर हम प्रेम की गंगा में बहने लग गये
राज तो अब राज उनका भी नहीं रह पाएगा
झूठ के उनके किले अब रोज ढहने लग गये
झूठ के उनके किले अब रोज ढहने लग गये
शेर कह पाने का जिनको है सलीका ही नहीं
ख़ुद को वो इल्मे-अरूज़ उस्ताद कहने लग गये
ख़ुद को वो इल्मे-अरूज़ उस्ताद कहने लग गये
लाल नीले या हरे खिलने लगे सब फूल अब
आँधियो के भी 'अमर' आघात सहने लग गये
आँधियो के भी 'अमर' आघात सहने लग गये
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