ग़ज़लः
अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
2122 2122 2122 212
देश हित में अब जवानी भी मचलनी चाहिए
क्रांति की आवाज़ दिल से अब निकलनी चाहिए
क्रांति की आवाज़ दिल से अब निकलनी चाहिए
भेद की दीवार करती मुल्क़ को बर्बाद है
सबको मिलकर मुल्क़ की सूरत बदलनी चाहिए
सबको मिलकर मुल्क़ की सूरत बदलनी चाहिए
आग बरसाने लगा पगला गया है सूर्य भी
सब हुए बेहाल अब तो शाम ढलनी चाहिए
सब हुए बेहाल अब तो शाम ढलनी चाहिए
चाँदनी सा वो बदन था कर दिया पागल मुझे
रूह पिघली अब नज़र रुख़ से फिसलनी चाहिए
रूह पिघली अब नज़र रुख़ से फिसलनी चाहिए
बेड़ियाँ हैं पाँव में ख़ामोश रहती है ज़ुबां
ख़ामुशी में भी 'अमर' इक आग जलनी चाहिए
ख़ामुशी में भी 'अमर' इक आग जलनी चाहिए
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