बैठे हैं हम भी इम्तिहाँ में
फिर हैं खिले फूल गुलिस्ताँ में
दिल में हलचल तो है
लेकिन
आवाज़ नहीं आज जुबाँ में
आवाज़ नहीं आज जुबाँ में
तनहाई का आलम क्यों
है
रहते जब हैं सब इसी मकाँ में
रहते जब हैं सब इसी मकाँ में
ऐ दिल मत हो तू उदास
कहीं
छा जाए न उदासी जहाँ में
छा जाए न उदासी जहाँ में
शोख निगाहों की ये
खता 'अमर'
कैसे सुकूँ मिले दर्दे-निहाँ में
कैसे सुकूँ मिले दर्दे-निहाँ में