रविवार, 4 फ़रवरी 2018

फिर एक और पुरानी बे-बह्र ग़ज़ल को बह्र में लाने की कोशिश
# बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ #
(फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन)
2122 1122 1122 22
वो सियासत सब दिन खूब किया करते हैं
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
वो सियासत सब दिन, खूब किया करते हैं
राम को रख गिरवी, आज जिया करते हैं।
रहनुमाई करने, का वो करते दावा
गौर से देख हमें, लूट लिया करते हैं।
जिन्दगी जंग बनी, अब तुम जानो तो फिर
जंग ऐसी जिसमें, अश्क पिया करते हैं।
फर्क है अब उनकी, या अपनी राहों में
बेबशों के हम तो, जख़्म सिया करते हैं।
मुल्क बदले इसका, भार *तेरे कंधे पर
संभलों तुम बहका, लोग दिया करते हैं।
अब सियासत करना, आज "अमर" सब चाहे
हम मगर सच के* लिए, नज़्म दिया करते हैं।

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