शनिवार, 27 जून 2020

बरसात थी अशकों की (ग़ज़ल)

बरसात थी अश्कों की, हम हँसकर मगर सबसे मिले
सूखे हुए भी फूल जैसै फिर चमन में हों खिले
मर-मर के यूँ जीता नहीं, आसान होती मौत गर
ऐ ज़िंदगी मैं चुप ही हूँ, हैं मेरे लब अब भी सिले
हमने सुना था ये कि रब जो चाहता होता वही
तो रह गया ख़ामोश क्यों तू चाँद-तारे जब हिले
तेरी ख़ुदाई में ख़ुदा मिलता अगर इंसाफ़ तो
मायूस जग होता नहीं होते नहीं सबको गिले
सहना पड़ेगा हर क़हर अब आह भर मत तू 'अमर'
दुश्मन दिलों में बस गया था इसलिये तो दिल छिले
आप, Gayatri Thakur, Ashish Anchinhar और 9 अन्य लोग

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