शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

खूब सोचो

क्या-क्या सोचते रहते हो .नौकरी ,गाड़ी ,मकान ,सामान ,जोड़-तोड़ और न जाने क्या-क्या .सोचना तो चैतन्य होने की निशानी है.जरूर सोचो.खूब सोचो.हाँ अपने बारे में ही सोचना चाहते हो तो भी सोचो.आत्म-केंद्रित होना गुनाह नहीं है.आत्म-रति तो स्थित-प्रज्ञ होने की पूर्व शर्त है.हाँ अपने सुख के बारे में ही सोचो.इससे ही दूसरों के भी सुख का रास्ता निकलेगा .तुम एक इकाई हो--इस ब्रह्माण्ड के सारे तंतु एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.तुम भी कई तंतुओं से जुड़े हो.अतः तुम्हारा सुख सिर्फ़ तुम्हारा नहीं सबका सुख है.सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः भी तो यही कहता है.सबके मूल में प्रेम है.ख़ुद से प्रेम,दूसरे से प्रेम,सबसे प्रेम.प्रेम ही जीवन है.प्रेम ही बंधन है ,प्रेम ही मुक्ति है,प्रेम ही इश्वर है,प्रेम ही सत्य है .प्रेम असीम है और प्रेम ससीम भी है.प्रेम आत्मिक है तो प्रेम मांसल भी है.शरीर प्रेम के मार्ग का सोपान भी है और शरीर प्रेम के पंथ का अवरोध भी.तुम्हें तय करना है की तुम्हारा अभीष्ट क्या है.आज वैलेंटाइन दिवस पर इतना शोर क्यों.मौन प्रेम के गुंजायमान स्वरों को साधो.प्रेममाय हो जाओ.----प्रेम न खेतो उपजे प्रेम न हात बिकाय , राजा परजा जेहि रुचे सीर दे प्रेम ले जाए.

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