शनिवार, 21 मार्च 2009

रात देर से आया.पहली बार दिल्ली से आगरा और उससे भी आगे सेवाल अहीर गाँव गया ख़ुद गाड़ी चलते हुए .सज्जन और दिल से मदद करने वाले लोग आज भी बहुत हैं.लेकिन राजनीति के खिलाड़ियों नि अपनी चाल होती है.परन्तु मैं संतुष्ट हूँ की मैं अपना काम कर रहा हूँ.पूनम भी मेरा पूरा साथ दे रही है.मेरे साथ गयी-आयी.थक कर सोई है.साक्षी स्कूल गई तो मैं उठकर ब्लॉग खोलकर बैठ गया.सूरज जी स्वस्थ रहते तो इस बार चुनाव जरूर लड़ते.इश्वर शीघ्र उन्हें स्वस्थ बनायें.केंसर जैसी बीमारी पर काबू पाना ईश्वर की कृपा और ख़ुद की जीजीविषा से ही संभव है.अचानक दो महीने में कितना बदल गया सूरज जी का संसार. मार्च को सफल ऑपरेशन हो गया.१६ मार्च को घर भी गए हैं.अभी ठीक ही हैं.नोर्मल होने में अभी वक्त लगेगा.ईश्वर कृपा करें.केंसर के नाम से दिल दहल जाता है.समीर बाबू कहाँ टिक पाए.गायत्री को इस छोटी सी उम्र में कितना बड़ा दुःख झेलना पड़ रहा है.परन्तु इंसान को तो परिस्थितियों से जूझना ही पड़ता है.प्रत्येक विषम परिस्तिथि में भी सतुलन बनाये रखने वाला ही विजयी होता है.पूज्य बाबूका ने उद्रार में कितना सही लिखा है---रूकने वाला हर चुका है,मंजिल पर ही क्यों रुके/अविरल चलने vala

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