रविवार, 15 मार्च 2009
mahaparva
लोकतंत्र के इस चुनावी महापर्व में आज भी करोड़ों हिन्दुस्तानियो की क्या भूमिका है उस पर कभी सोचा है.दिल्ली के चश्मे से महानगरों और शहरों की हलचलों के आधार पर पुरे देश की नब्ज पहचानने का दावा करने वाले बुद्धिजीविओं पर जमीनी नेता हंसते हें तो क्या हुआ?बुद्धिजीवी भी कहाँ सुधारने वाले हैं .चुनावी महापर्व के पंडित बनते हैं परन्तु चुनावी महासमर के योद्धा नही बन सकते हैं.परन्तु मैं इस अग्नि परीक्षा में से होकर गुजरना चाहता हूँ.है किसी पार्टी मैं नैतिक दम जो मेरे सिधान्तों को स्वीकार करते हुए मुझपर भरोसा करे और मुझे महज बुद्धीजीवी ही नहीं इस चुनावी महासमर का महारथी स्वीकार करे.आप सबकी मदद कहता हूँ.कौन-कौन साथ दोगे और क्या मदद कर सकोगे? तुम मुझे विश्वास दो मैं तुम्हें परिवर्तन दूंगा.
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