बहुत दिनों के बाद likh रहा हूँ , क्योंकि अभी कंप्यूटर की भाषा में दक्षता न रहने के कारण तीन-चार दिनों से कुछ लिख ही नही पा रहा था.खैर...........
इन दिनों धटनाएं तेजी से घाट रही हैं.आज कई राज्यों मैं चुनाव हुए.रात के समाचार से पता चलेगा की कहाँ क्या हुआ?हाँ आज के अखबार में दक्षिण अफ्रीका के चुनाव की बात कही गई है और बताया गया है की भारत के विपरीत वहां मतदान की प्रक्रिया एकदम शांत होती है तथा एक रूटीन की तरह इसे भी समझा जाता है.वहां के पूर्व राष्ट्रपति डॉ नेल्सन द्वारा वोट डालने की फोटो भी छपी है.तो फिर हमारे देश का यह मंजर क्यों?इसका विश्लेषण हम सबको अपने-अपने ढंग से करना ही चाहिए.आज की घटनाओं पर तो प्रतिक्रिया बाद में ही पोस्ट कर पाऊंगा ,परन्तु ,हॉटसिटी डॉट कॉम पर एक पाठक(झा जी) की प्रतिक्रिया से जोड़कर आज पुनः उसी सवाल को रखना चाहूँगा.रवि वार की रात शिप्रा-रिविएरा में एक घटना घटी.किसी का नाम नही लूँगा .एक पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा लगे गए झंडे को उतरकर दूसरी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी पार्टी का झंडा लगा दिया गया.दूसरी पार्टी के कार्यकर्ता इस आर डब्लू ऐ के अध्यक्ष भी हैं.इस बात को लेकर बवाल हो गया.आपस में भिड़ने से माहोल तनावपूर्ण हो गया.पुलिस के आला अधिकारियों ने तुंरत घटनास्थल पर पहुंचकर स्थिथि को नियंत्रित किया.फेडरेशन ऑफ़ आर डब्लू एज के प्रेजिडेंट की हैसियत से वहां पहुंचकर मैंने भी स्थिति को नियंत्रित करने में यथा सम्भव योगदान दिया.मंगलवार के अखबारों ने इसे बड़ी ख़बर बनाया.प्रशासन ने भी इसे गंभीरता से लिया है.पर प्रश्न उठता है की आख़िर आपस में उलझाने वाले लोग कौन थे? इसी सोसाइटी के थे.लेकिन यहाँ वे सोसाइटी के हित में नही बल्कि आपने निजी हितों के लिए लड़ रहे थे.शायद अपनी-अपनी पार्टी के आकाओं को खुश करने के लिए,ताकि कल उनकी दूकानारी चमकती रहे.मुझे पूरा यकीन है की किसी भी प्रत्याशी ने उन्हें इस तरह से लड़ने हेतु नही कहा होगा.बल्कि जब झगडे की स्थिति हो गयी थी तो अध्यक्ष की पार्टी के कई छोटे-बड़े नेताओं ने भी उनके कार्य की निंदा की ,चाहे मामले को टूल न देने के लिए ही सही.तो फिर आख़िर क्यों नहीं ये छोटे स्टार के लोग इतनी बड़ी समस्या पैदा करने से बाज आते हैं?इससे भी बड़ा प्रश्न यह है की क्यों इसे लोगों का व्यवहार जानते हुए भी लोग इन्हे आर डब्लू ऐ की चाबी सौप देते हैं?इसलिए सोचना हम सबको है की कैसे स्थिति बदलेगी?
अब आइये झाजी और अन्य पाठकों की टिप्पणियों की भावना पर.लगता है हम सब आज जिस संकट के दौर से गुजर रहे हैं--उसे विस्वास का संकट कहा जब सकता है.इतनी बार आम लोग ठगे जा चुके हैं की किसी पर विश्वास ही किया जाता है.बहुत आसानी से सबको एक साथ ब्रांड कर दिया जाता हा "आप लोग" कहकर.आर डब्लू ऐ इतनी चोटी ईकाई होती है की यहाँ आप किसी के भी बारे में सबकुछ पता कर सकते हैं,पर किसी को इसकी फुर्सत नहीं है,क्योंकि "आप सब" कहकर अपने कर्तव्य की पूर्ति का आत्म-संतोष लोगों को मिल जाता है.अतः यह जो शोर्ट कर्ट का फार्मूला है,इंस्टेंट करने और कहने की जीवन शैली है उसमे मंथन की क्षमता है ही नही.विशास के संकट के इस दौर में , इसीलिए हमारे जैसे लोगो की प्रासंगिकता है,क्योंकि हम अलग हटकर कुछ कहने की कोशिश कर रहे हैं.अलग हटकर कुछ करने की भी कोशिश कर रहे हैं,पिछले २८ वर्षों की मेरी आंदोलनात्मक गतिविधियों से जो परिचित हैं ,इस तथ्य को स्वीकारते हैं.नही मैं उत्तेजित नही हो रहा हूँ,चिंतित हो रहा हूँ की इस इंस्टेंट kalchar में भी मुझे परिवर्तन की राह तो बनानी ही है ,भले ही उसके लिए वैकल्पिक राजनीति के प्रयोग कितनी बार भी क्यों न करना पड़े?सच तो यह है की इंदिरा[uram में एक bar मौका मिला तो मैंने कुछ समर्पित और prabuddha लोगों के साथ मिलकर जिस फेडरेशन को खड़ा किया है वह एक और jahan यहाँ के niwasiyon के लिए taakatvar जन manch बन कर खड़ा है वहीं इस से nihit rajnitik tatva ghabrane लगे हैं.अतः यह जंग jari है--बस aapsabko pahchaanna है की dharma kahn है kyoki jaha dharma है वहीं jay है.
गुरुवार, 23 अप्रैल 2009
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