रविवार, 3 सितंबर 2017

कातिल तेरी अदाएँ

कातिल तेरी अदाएँ
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अमर पंकज
(डा अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
कातिल तेरी अदाएँ शातिर तिरा मुस्कुराना
पहलू में छिपा खंजर दिल से दिल मिलाना।
मिजाज कुछ शहर का कुछ असर तुम्हारा
खुशी मिली मुझे भी के मौजूं मेरा फसाना।
फितरत तेरी समझकर सभी हँस रहे अब
मिलकर तेरा हमीं से यूँ हाले-दिल सुनाना।
सबको खबर हुई मुश्किल में आज तुम भी
फिर करीब आने का खोजते नया बहाना।
कदमों में बिछ गए पड़ी जब तुम्हें जरूरत
मेरा जो वक्त बदला रकीबों के पास जाना।
खुदा की ईनायत 'अमर' ईमान तेरा गवाह
जख्म भरे तो नहीं पर गैरों को मत रुलाना।

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