शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

पहले से थे करीब जब करीब और आ गए
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पहले से थे करीब जब करीब और हो गए
नज़दीक से देखा तो हमसे वो दूर हो गए।
पास रहते रहे मग़र बनी रहीं दूरियाँ जनाब
जख्म़े-ज़िगर देकर वो भी यूँ मश़हूर हो गए।
लुत्फ़ ले रहे सब पढ़कर हर्फ़े-दर्दे-दिल मेरा
कुरेदा पुराने घाव जो सिरफ़ नासूर हो गए।
गूँज़ती रही चुप्पी मुस्कुराते रहे होंठ उनके
समां ऐसा के शेर कहने को मजबूर हो गए।
मश़गूल सभी खुद में कुछ मश़रूफ भी रहे
बदला तो नहीं कुछ बदनाम जरूर हो गए।
'अमर' उस्ताद बन रहे वही जो मुरीद़ थे तेरे
बदलती आब़ो-हवा में सबको ग़ुरूर हो गए।

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