शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

लोग तो हमेशा से धरम के मरम में जीते चले जाते हैं
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लोग तो हमेशा से धरम के मरम में जीते चले जाते हैं
डूबते हुए सूरज को भी वो श्रद्धा से दीया दिखाते हैं।
देख लो खोलकर आँखें तुम दीनो-धरम के ठेकेदारो
चीखते रहो लेकिन हम ही पूजा का अर्थ जतलाते हैं।
कुदरत लुटाती रही नूर सब पर खुदा की कायनात में
और इंसान आज आबो-हवाओं का भी दिल दुखाते हैं।
कचरा फैलाते नव-दौलतिया पागलपन के इस दौर में
सर्द पानी में खड़े लोग सुबह का उजाला ढूंढ लाते हैं।
रोज करते जुमलों से विकास हालते-मुल्क की रहनुमा
मगर साफ कर गंदगी आम आदमी उम्मीद जगाते हैं।
पहनकर नाकभर सेंदूर वो दुआ में उठाते रहे दोनों हाथ
जिंदगी तो जश्न है 'अमर' हर पल उमंगों के गीत गाते हैं।

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