शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
आज़ाद उड़ते हम परिंदे
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
आज़ाद उड़ते हम परिंदे बांधने की सोच मत
लांघा करें सबदिन समंदर रोकने की सोच मत।
आकाश को जब नाप लेते रोज अपने पंख से
पर्वत झुका है राह में तो खेलने की सोच मत।
तूफ़ान से यारी रही पर आज मौसम साफ़ है
थक कर नहीं बैठे कभी तो बैठने की सोच मत।
दिखने लगा साहिल यहाँ से चाल थोड़ी तेज कर
दुश्मन खड़ा पतवार अपने छोड़ने की सोच मत।
फ़िर भा गई उनकी अदा लगने लगीं वो खुद ग़ज़ल
अब इस लहर में डूबकर तुम तैरने की सोच मत।
कुछ प्रीति की भी रीत होती तू समझ ले ये "अमर"
वो कह गए दिल खोलकर फ़िर भूलने की सोच मत।

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