रविवार, 4 फ़रवरी 2018

तुम वही हो
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
तुम हो हाँ तुम्हीं हो
तुम वही हो वही हो
हाँ तुम वही हो
जिस्म के पार
रूह में बस गई हो
खुशबू की तरह
साँसों में समा गई हो
तुम वही हो वही हो
हाँ तुम वही हो।
मादक सी गंध देह की
बावला बना दे
आवारा परिन्दे को
घरौंदा दिखा दे
अमावस की रात में
चाँद ख़िला दे
प्यार की निशानी
सुर्ख़ होंठों पे छा गई है
नज़रों की कशिश
गुलाबी बदन बन गई है
जीने की फिर से
मोहलत दे रही है
मोहब्ब़त की इज़ाज़त
फ़साना बन रही है।
मेरे वजूद पे तुम
ख्वाबों सी छा गई हो
सर्द सुबह में आज
धूप सी खिल गई हो
धड़कनों में सरगम का
गीत बन गई हो।
तुम वही हो वही हो
हाँ तुम वही हो
जिस्म के पार
मेरे रूह में बस गई हो
खुशबू की तरह
साँसों में समा गई हो
तुम वही हो वही हो
हाँ तुम वही हो।

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