जो होता है मजबूर इंसान कोई
बसाता वो दिल में है भगवान कोई
बसाता वो दिल में है भगवान कोई
समंदर, मैं बेचैन तेरी तरह हूँ
उठा चाहता दिल मेँ तूफ़ान कोई
उठा चाहता दिल मेँ तूफ़ान कोई
कसक सी उठी है पड़ी जब नज़र तो
पुराना जैसे जागा हो अरमान कोई
पुराना जैसे जागा हो अरमान कोई
ज़मीं पर सितारों को अब मैं उतारूँ
मचलता है दिल जैसे नादान कोई
मचलता है दिल जैसे नादान कोई
जपा है किया नाम महबूब का ही
न दीदार उनका न इमकान कोई
न दीदार उनका न इमकान कोई
समय ही कराता रहा है सभी कुछ
समय से ज़ियादा न बलवान कोई
समय से ज़ियादा न बलवान कोई
'अमर' घाव दे बेवजह जो किसी को
न होता बड़ा उससे शैतान कोई
न होता बड़ा उससे शैतान कोई
---- अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
(20.11.2018)
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
(20.11.2018)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें