गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

दोहे
---------------------------------------------------
माँ तुम दो वरदान यह, सुखमय हो संसार
दुखी नहीं कोई रहे, बना रहे बस प्यार।
जाति-धर्म के नाम पर, होवे नहीं बवाल
प्रेम पूर्ण जीवन बने, ऐसा करो कमाल।
हो विकास चहुँदिश यहाँ, पिछड़ापन हो दूर
हरे-भरे जंगल रहें, खेती हो भरपूर।
कृपा करें गुरुजन सभी, मिले नयी नित सीख
कंचन सी काया रहे, माँ दे दो यह भीख।
खल जो करे कुपथ गमन, उस पर अंकुश डाल
जो अनुगामी धर्म का, होवे क्यों बेहाल।
उसको पूछे कौन है, जो सद्गुण की खान
अधम-नीच खुद को कहे, अवतारी भगवान।
कितने रावण-कंस अब, नित लेते अवतार
त्राहि-त्राहि सब कर रहे, सुन लो करुण पुकार।
देवासुर संग्राम का, नहीं हुआ है अंत
रक्तबीज से हैं खड़े, देखो दैत्य अनंत।
नवयुग का आगाज़ हो, माँ दे दो आशीष
पर पीड़क का नाश हो, चाहे काटो शीश।
देखा बरसों से 'अमर', नौ दिन पूजें लोग
दशमी को आनंद लें, तन-मन रहे निरोग।
 डाॅ अमर पंकज

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें