शनिवार, 27 जून 2020

चल रहे सब साथ हैं पर हाथ सबके आइना (ग़ज़ल)

चल रहे सब साथ हैं पर हाथ सबके आइना
कैसे छिप सकता है कुछ गर हाथ सबके आइना
है किसे परवाह कितने दाग दामन पर पड़े
भूल जाते लोग अक्सर हाथ सबके आइना
है गज़ब की होड़ ये सब रख रहे सबकी ख़बर
एक दूजे पे हैं निर्भर हाथ सबके आइना
क़त्ल मेरा करके तुम कहते रहे हो ख़ुदकुशी
खामखा इल्ज़ाम मुझ पर हाथ सबके आइना
मत करो चालाकियाँ अब हैं सयाने सब 'अमर'
अक़्स तेरा दिख रहा हर हाथ सबके आइना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें