क्या कहें किसको कहें सौगात दी जो ज़िंदगी ने
दानवी इस दौर में चुप कर दिया है बेबसी ने
एक ही अपराध मेरा, सच को सच कहता रहा मैं
कौन देता साथ सच का, मुझसे दूरी की सभी ने
क्रांति थी आराधना, मैं था मनुजता का पुजारी
भेद की दीवार तोड़ी, साल के हर दिन महीने
जाति-मज़हब कुछ नहीं बस प्रेम था जीवन हमारा
पर उजाड़ा प्रेम का संसार नफ़रत की नदी ने
ॠषि विरासत धमनियों में भूल बैठा क्यों 'अमर' तू
त्याग तेरा देख रक्खा युग युगों से हर सदी ने
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