शनिवार, 27 जून 2020

तू वफ़ा कर न कर ज़िंदगी (ग़ज़ल)

तू वफ़ा कर न कर ज़िंदगी
जी रहा मैं मग़र ज़िंदगी
हर दिशा कह रही है मुझे
हादसों का सफ़र जिंदगी
कुछ मुझे भी पता तो चले
जा रही है किधर ज़िंदगी
रोज मैं दे रहा इम्तिहाँ
इम्तिहाँ है अगर ज़िंदगी
चल रहीं तेज हैं आँधियां
पर अडिग है शजर ज़िंदगी
छँट रही स्याह शब देखिये
सुर्ख़ सी हर सहर ज़िंदगी
लह्र में तैरना सीख़ ले
हर तरफ़ है भँवर ज़िंदगी
हादसे सिर्फ़ हैं हादसे
टूट मत इस क़दर ज़िंदगी
हार क्या जीत क्या सोच मत
हर घड़ी है समर ज़िंदगी
वक़्त का फैसला मान तू
कह रही है 'अमर' ज़िंदगी
Mohan Kumar Sinha

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