शनिवार, 27 जून 2020

झूठ है सब (ग़ज़ल)

झूठ है सब
ये कहा कब?
होश आया
लुट गया जब
दूर थे जो
पास हैं अब
अब तो मेरा
प्यार मज़हब
रह के चुप तू
देख करतब
बँट रही है
मुफ़्त मनसब
हँस रहे हो
बंद कर लब
हर किसी को
देखता रब
राज जब था
फ़िक्र थी तब
अब 'अमर' क्या
चुप का मतलब

कमें

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें