आँख मेरी देखिये अब नम नहीं है
ज़िंदगी की हर डगर तो सम नहीं है
साँप की फितरत है डसना मानता हूँ  
ज़ह्र मुझको मार डाले, दम नहीं है
सुर-असुर संग्राम तो सच सभ्यता का
कल्पना की ही उपज तो यम नहीं है
किस तरह तोड़ा मेरा सबने भरोसा 
क्या बताऊँ कोई तो हमदम नहीं है
हैं हज़ारों ग़म के मारे इस जहाँ में   
सिर्फ़ तेरा ग़म ही केवल ग़म नहीं है
ख़ुद बिखर कर रोकता हूँ आँसुओं को
जी रहा इस दौर में भी, कम नहीं है
दानवों के चीथड़े कैसे उड़ेंगे 
तू 'अमर' है आदमी, तू बम नहीं है
 
 

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