शनिवार, 27 जून 2020

ग़मों का बोझ यूं ढोता (ग़ज़ल)

ग़मों का बोझ यूँ ढ़ोता कि मैं हूँ प्यार में पागल
पता मुझको तो कुछ होता कि मैं हूँ प्यार में पागल
नदी फिर प्यार की उमड़ी बहाती जा रही मुझको
लगाऊँ बाढ़ में गोता कि मैं हूँ प्यार में पागल
महकती साँस थी तेरी बहकता दिल भी था मेरा
तो कैसै चैन से सोता कि मैं हूँ प्यार में पागल

फड़कते सुर्ख़ लब तेरे छलकते नैन भी मेरे
यूँ ही मन मैल मैं धोता कि मैं हूँ प्यार में पागल
बदन अब भी सुलगता है नशा जब प्यार का छाता
पुरानी याद में खोता कि मैं हूँ प्यार में पागल
शिकायत है उन्हें मुझसे कि क्यों मैं दूर हूँ उनसे
अकेला ही मैं क्यों रोता कि मैं हूँ प्यार में पागल
उगेगी बेल जहरीली अगर ये जानता साथी
कहो फिर बीज क्यों बोता कि मैं हूँ प्यार में पागल
'अमर' संसार है दुखमय मगर सुख नाम है तेरा
तेरे ही नाम में खोता कि मैं हूँ प्यार में पागल

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