शनिवार, 11 जुलाई 2020

आँधियो में ज़ोर कितना (ग़ज़ल)

ग़ज़ल:
अमर पंकज
(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621

आँधियों में ज़ोर कितना आज़माते हम रहे
ज़िन्दगी तेरे तराने रोज़ गाते हम रहे

फूल की मुस्कान कल थी आज पत्थर भाग्य में
प्यार से पिघला दो पत्थर यह सिखाते हम रहे

झूठ ही युगधर्म है कैसे कहो हम मान लें
सांकरी सच की गली चलकर दिखाते हम रहे

दिन पुराने याद करके खंडहर ग़मगीन था
कैसे करता ग़म गलत उसको रुलाते हम रहे

हाथ की उलझी लकीरों पर करें विश्वास क्यों
जब कभी उजड़ा चमन तो गुल खिलाते हम रहे

छा रहा था फिर नशा या गुफ़्तगू का था असर
सुर्ख़ से गुस्ताख़ लब थे दिल लगाते हम रहे

क्यों नहीं उनपर भरोसा हम 'अमर' फिर से करें
मिल तसव्वुर में उन्हीं से खिलखिलाते हम रहे

सोमवार, 6 जुलाई 2020

शुक्रिया तेरा वतन (ग़ज़ल)


शुक्रिया तेरा वतन हम हक़ अदा करते रहे
सरहदों की हो सुरक्षा इसलिये मरते रहे

है पता बदलेंगी इक दिन मुल्क़ की रानाइयाँ
पर भयानक देख मंज़र आज हम डरते रहे

पाल रक्खा था सँपोला काट खाया जिसने है
जानलेवा ज़ह्र हर-पल अश्क़ बन  झरते रहे

पूछ बैठें हम न ग़ुरबत या जहालत का सबब
इसलिये वो धर्म में उलझा दिया करते रहे

क्या कहीं से फिर चुनावी है हवा बहने लगी?
रैलियाँ इस लाॅकडाउन में भी वो करते रहे

कब बहेगा धमनियों में गर्म ख़ूँ फिर से 'अमर'
छोड़कर लड़ना लड़ाई आह क्यों भरते रहे

रविवार, 5 जुलाई 2020

आपसे मिलने की ख़ातिर (ग़ज़ल)



आपसे मिलने की ख़ातिर आह हम भरते रहे
क्या हुआ जो ख़्वाब में ही प्यार हम करते रहे

क्या कहेंगे क्या सुनेंगे सोचना मुश्किल हुआ
उलझनों में हम उलझकर रोज ही मरते रहे

सुहबतों ने आपकी हमको  सिखाई है वफ़ा
हम वफ़ा के नाम पर ख़ुद पे सितम करते रहे

बादलों की ओट से चमकीं कभी जब बिजलियाँ
डर पुराना याद कर अंज़ाम से डरते रहे

इश्क़ में हम आपके जबसे हुए पागल हैं जी
ज़ह्र का हर घूंट भी हँस कर पिया करते रहे

जब ये जाना राह उनकी और मेरी  है ज़ुदा
नैन से मोती निरंतर बूँद बन झरते रहे

आपकी बदमाशियों ने गुदगुदाया दिल 'अमर'
छुप-छुपाके प्यार यूँ ही आपसे करते रहे

गुरुवार, 2 जुलाई 2020

अनमोल हैं आँसू न जाया करो (ग़ज़ल)


अनमोल हैं आँसू न जाया करो
बेवजह भी तुम मुस्कुराया करो

मुश्किल है जीना तुम्हारे बिना
मेरे ख्वाबों ख्यालों में आया करो

प्याले गमों के हैं छलकने लगे
मत धैर्य मेरा आज़माया करो

प्यासा बहुत हूँ प्यार का जाम अब
हर रोज आकर तुम पिलाया करो

जो रूठते हैं प्यार में बार बार
पलकों पे उनको ही बिठाया करो

माना कि मुश्किल है डगर प्यार की
हिम्मत दिखाकर पास आया करो

हर हाल देता साथ है जो 'अमर'
तुम भी उसी पर दिल लुटाया करो

तू क्यों छुपाता है मियाँ (ग़ज़ल)


तू क्यों छुपाता है मियाँ
जो हैं तेरी मज़बूरियाँ

ये तो नशा है वस्ल का
कहतीं खनकतीं चूड़ियाँ

आँसू गिरे तब भी नहीं
चुभती रहीं जब बर्छियाँ

अब दूर से ही दिल मिला
रखनी अभी हैं दूरियाँ

फ़ितरत यही कुर्सी की है
सबको लड़ातीं कुर्सियाँ

आवाज़ देतीं सरहदें
आओ पहन लें वर्दियाँ

होगा बदलना अब 'अमर'
दो छोड़ बनना सुर्खियाँ