मंगलवार, 1 सितंबर 2020

ग़ज़ल


ग़ज़लः

क्या है अच्छा और क्या अच्छा नहीं कैसे कहें,
है यहाँ पर कोई भी सच्चा नहीं कैसे कहें।

हम ग़ज़ल हिन्दी में कहते चढ़ सके जो हर जुबां,
अब दिलों में घर बने इच्छा नहीं कैसे कहें।

दोस्त समझा और हमने भी भरोसा कर लिया,
दोस्ती में भी मिला गच्चा नहीं कैसे कहें।

तेज़ सी आवाज़ है और तल्ख़ से अल्फाज़ भी,
उनको अच्छी ही मिली शिक्षा नहीं कैसे कहें।

दाद दी हर शेर पर उसने हमें दिल भी दिया,
वह अभी मासूम सा बच्चा नहीं कैसे कहें।

क्यों गुज़ारिश पर गुज़ारिश आपसे अब भी करें,
आपने जो भी दिया भिक्षा नहीं कैसे कहें।

दो क़दम आगे बढ़ा पीछे हटा तू सौ क़दम,
प्यार में तू है 'अमर' कच्चा नहीं कैसे कहें।

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