अगर मैं तेरे शह्र आया न होता,
तो दिल को भी पत्थर बनाया न होता।
उजड़ती नहीं ज़िंदगी हादसों से,
अगर होश अपना गँवाया न होता।
सँपोले के काटे तड़पता नहीं मैं,
अगर दूध उसको पिलाया न होता।
बयाँ तजर्बा अपना करता मैं कैसे
अगर ज़िंदगी ने सिखाया न होता।
कभी कह न पाता ग़ज़ल इस तरह मैं,
अगर जख़्म मैंने भी खाया न होता।
अँधेरों में भी रोशनी आती छनकर,
अगर चाँद ने मुँह छुपाया न होता।
तेरी याद में मुस्कुराता वो कैसे,
अगर तू 'अमर' उसको भाया न होता।
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