कविता की व्याख्या अलग-अलग संदर्भों में और अलग-अलग दृष्टिकोणों से की जा सकती है, परंतु रचना प्रक्रिया और रचयिता की रचना-पूर्व मनःस्थिति की समझ सिर्फ किसी रचनाकार को ही हो सकती है। पाठक-समीक्षक-समालोचक भी स्रष्टा की सृष्टि की रस-धारा में अवगाहन करने वाले सहयात्री होने का अति महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करते हैं। यही कारण है कि किसी को कोई रचना पसंद आती है तो किसी दूसरे को वही रचना प्रभावित नहीं कर पाती है। लेकिन पसंद-नापसंद से परे, पाठकों की सहभागिता के बाद ही रचना-प्रक्रिया पूर्ण होती है। अतः कोई भी रचना सिर्फ स्वांतःसुखाय के लिए नहीं सृजित होती है। इसीलिए कवि या शायर अपनी कविता या शायरी विनम्रता से पाठकों / श्रोताओं के सम्मुख बार-बार परोसता है। कम से कम मैं तो इसीलिए ऐसा करता हूँ।
रविवार, 4 फ़रवरी 2018
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