मेरी कही 100वीं ग़ज़ल
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(221 2122 221 2122 मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन)
बहरे मज़रिअ मुसम्मन मक़्फूफ मक़्फूफ मुख़न्नक मक़्सूर।
बेवक्त तुम यहाँ
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
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अमर पंकज
(डॉ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल-9871603621
बेवक्त तुम यहाँ हो कुछ छूटने लगे अब
टूटे परों परिन्दे उड़ते कहाँ दिखे कब।
टूटे परों परिन्दे उड़ते कहाँ दिखे कब।
वह वाकया अज़ब जो दिल ने छुपा रखा है
कटकर सभी धड़ों में चलते हुए मिले जब।
कटकर सभी धड़ों में चलते हुए मिले जब।
शमशीर का निशाना पर फूल बन रहे हैं
फूलों के भार से ही हर पल दबे पड़े अब।
फूलों के भार से ही हर पल दबे पड़े अब।
हसरत रही मुझे के तुमको जता सकूँ मैं
हर चीर जब रहे थे सबके सिले हुए लब।
हर चीर जब रहे थे सबके सिले हुए लब।
करते शुरू नया जब कोई सितम अनूठा
पैग़ाम भेजते हैँ वो फिर नए-नए तब।
पैग़ाम भेजते हैँ वो फिर नए-नए तब।
बातेँ सभी करें अब दिन-रात दीन ही की
दीनो-धरम "अमर" है मतलब अगर सधे तब।
दीनो-धरम "अमर" है मतलब अगर सधे तब।
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